Wednesday, January 8, 2014

...तो हर किसी के पास होगा बैंक में खाता!

Have bank accounts for all by Jan 2016 Nachiket Mor panel
भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर रघुराम राजन आने वाले दिनों में देश की बैंकिंग सेवाओं में आमूल-चूल परिवर्तन करने की तैयारी में हैं।

राजन द्वारा वित्तीय समावेशन पर गठित समिति ने मंगलवार को जो सिफारिशें की हैं, अगर वह अमल में आती हैं तो देश के हर तबके के लिए बैंकिंग सेवाएं आसान हो जाएंगी।

रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड के सदस्य नचिकेत मोर की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा है कि साल 2016 से देश के हर वयस्क आदमी के पास इलेक्ट्रॉनिक खाता होना चाहिए। जिससे वह अपनी जरूरत की सभी बैंकिंग सेवाएं सुरक्षित तरीके से प्राप्त कर सके।

यही नहीं, समिति ने सिफारिश की है कि देश के किसी भी कोने में खाता धारक को बैंकिंग आउटलेट तक पहुंचने के लिए 15 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए।

समिति ने कहा है कि ग्राहकों की जरूरत को देखते हुए बैंकों के विभिन्न वर्ग बनाने की जरूरत है। जिसके तहत शाखा के जरिए काम करने वाले राष्ट्रीय बैंक, एजेंट के जरिए काम करने वाले राष्ट्रीय बैंक, क्षेत्रीय बैंक, राष्ट्रीय उपभोक्ता बैंक, नेशनल होलसेल बैंक, नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक, पेमेंट बैंक, होलसेल कंज्यूमर बैंक, होलसेल इनवेस्टमेंट बैंक, पेमेंट नेटवर्क ऑपरेटर जैसे वर्ग बनाए जाने की जरूरत है।

सुविधाएं देने वाले बैंकों की वकालत
समिति इस तरह ग्राहकों की जरूरत के मुताबिक सुविधाएं देने वाले बैंकों की वकालत कर रही है।

समिति ने कम आय के लोगों को आसानी से कर्ज मुहैया कराने वाले मॉडल को विकसित करने की सिफारिश भी की है।

इसके तहत लोगों की जरूरत के मुताबिक प्रोडक्ट लाने की बात कही गई है। जिसके लिए समिति ने हर जिले और प्रमुख उद्योग के आधार पर कर्ज की रफ्तार बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है।

समिति का कहना है कि कम आय वर्ग के लोगों के लिए ऐसे बीमा उत्पाद और जोखिम से बचाने वाले उत्पाद लाए जाने चाहिए, जो कि लोगों को खाने-पीने की चीजों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचा सके। इसी तरह, मवेशियों की मौत, बाढ़, संपत्ति के नुकसान आदि पर उन्हें सुरक्षा कवर मिल सके।

समिति कम आय के वर्ग के लिए कर्ज और बीमा देने का ऐसा मॉडल तैयार करना चाहती है, जिससे सूदखोरों आदि के चंगुल में फंसने से लोगों को बचाया जा सके।

हालांकि समिति के कुछ सदस्यों ने इन सिफारिशों को अमली जामा पहुंचाने के लिए तय एक जनवरी 2016 के समयसीमा को पर्याप्त नहीं भी माना है। उनके अनुसार यह सब कुछ साल 2017 से 2018 के बीच तक लागू किया जा सकता है।

कर्ज माफी की जिम्मेदारी बैंकों की नहीं
वित्तीय समावेशन पर गठित समिति ने कहा है कि बैंकों को सस्ता कर्ज, कृषि ऋण माफी, कर्ज पर मिलने वाली ब्याज सब्सिडी आदि का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। बैंक ग्राहक के जोखिम के आधार पर कर्ज दें। सरकार जो भी सब्सिडी या कर्ज माफी देना चाहती है, वह सीधे खाता धारक के खाते में पहुंचनी चाहिए।

एक जनवरी 2016 से प्रस्तावित सिफारिश:
- हर वयस्क का हो बैंक खाता।
- देश के हर कोने में 15 मिनट की दूरी पर हो बैंकिंग सेवाएं।
- ग्राहक इन आउटलेट से नकद जमा, निकासी, राशि को दूसरे खाते में ट्रांसफर कर सके।
- आधार नंबर प्राप्त करने पर बैंक उसे एक बैंक खाता दें।
- ग्राहकों की वित्तीय सेवाओं से संबंधित शिकायत के लिए वित्त मंत्रालय के तहत एकीकृत एजेंसी का गठन।
- ग्राहकों की जरूरत के मुताबिक बने बैंकों का वर्ग।
- प्राथमिकता क्षेत्र को मिलने वाले कर्ज की सीमा 40 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी की जाए।
- कम आय वर्ग की जरूरतों के लिए बने बैंक 50 हजार रुपये तक का लेन-देन करें।

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