![नया बवाल: जजों की बैठक बुलाकर फंसे आप के मंत्री Delhi law minister trapped in new controversy](http://img.amarujala.com/2014/01/07/somnathi-bharti-aap-aam-52cc3f6b99cfd_exl.jpg)
खास-खास
ये था मामला- जजों की बैठक बुलाने पर विवादों में घिरे कानून मंत्री
- कानूनविदों ने कहा- कानून के कच्चे हैं दिल्ली के कानून मंत्री
- जजों की बैठक बुलाने का अधिकार सिर्फ मुख्य न्यायाधीश को
जिला अदालतों के जजों की बैठक बुलाने का आदेश देकर दिल्ली सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती विवादों में घिर गए हैं।
कानूनविद इस कदम को स्वतंत्र न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप बताते हुए कह रहे हैं कि कानून मंत्री खुद अधिवक्ता होने के बावजूद कानून के कच्चे हैं।
उनका मानना है कि जिला अदालतों के न्यायाधीश सीधे हाईकोर्ट के अधीन आते हैं। केवल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ही जजों की बैठक बुलाने का अधिकार है।
हालांकि हाईकोर्ट सूत्रों का कहना है कि प्रमुख सचिव एएस यादव (कानून) ने अभी तक कानून मंत्री के निर्देश के संबंध में कुछ भी लिखित में नहीं दिया है। लेकिन वे प्रमुख सचिव (कानून) के हाईकोर्ट में आकर मुख्य न्यायाधीश से मिलने की पुष्टि कर रहे हैं।
हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा का कहना है कि कानून मंत्री को एक जज को भी बुलाने का अधिकार नहीं है। न्यायपालिका स्वतंत्र है और जिला अदालत के जज हाईकोर्ट के अधीन आते हैं।
उन्होंने कहा तालमेल के लिए दिल्ली सरकार सेमीनार आयोजित कर जजों को बुला सकती है और उसमें अपने विचार रख सकती है। लेकिन सेमीनार में शामिल होने के लिए भी किसी जज को बाध्य नहीं कर सकती।
आपराधिक मामलों के विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता का कहना है कि कानून मंत्री को अधिवक्ता होने के बावजूद कानून की जानकारी नहीं है।
उन्हें यह जानकारी होनी चाहिए कि किसी न्यायाधीश को बतौर प्रमुख सचिव (कानून) के पद पर प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता है।
उनका काम मात्र कानूनी मुद्दों पर सलाह देना है, न कि बैठक बुलाने का कामकाज देखना। वे सरकार के संयोजक नहीं हैं। मंत्री को न्यायपालिका के किसी भी काम में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
उन्होंने कहा कि प्रतिनियुक्ति पर भी सरकार या अन्य विभागों में न्यायाधीश को भेजना गलत है। न्यायाधीश का काम न्याय देना है। कानूनी मुद्दों पर सलाह के लिए लॉ अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
क्या था मामला-
कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने प्रमुख सचिव एएस यादव (कानून) को जिला अदालतों के जजों की बैठक बुलाने के लिए कहा। यादव ने उनके निर्णय पर असहमति जताते हुए स्पष्ट कर दिया कि बैठक बुलाना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। यह अधिकार मात्र मुख्य न्यायाधीश को ही है।
कानूनविद इस कदम को स्वतंत्र न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप बताते हुए कह रहे हैं कि कानून मंत्री खुद अधिवक्ता होने के बावजूद कानून के कच्चे हैं।
उनका मानना है कि जिला अदालतों के न्यायाधीश सीधे हाईकोर्ट के अधीन आते हैं। केवल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ही जजों की बैठक बुलाने का अधिकार है।
हालांकि हाईकोर्ट सूत्रों का कहना है कि प्रमुख सचिव एएस यादव (कानून) ने अभी तक कानून मंत्री के निर्देश के संबंध में कुछ भी लिखित में नहीं दिया है। लेकिन वे प्रमुख सचिव (कानून) के हाईकोर्ट में आकर मुख्य न्यायाधीश से मिलने की पुष्टि कर रहे हैं।
हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा का कहना है कि कानून मंत्री को एक जज को भी बुलाने का अधिकार नहीं है। न्यायपालिका स्वतंत्र है और जिला अदालत के जज हाईकोर्ट के अधीन आते हैं।
उन्होंने कहा तालमेल के लिए दिल्ली सरकार सेमीनार आयोजित कर जजों को बुला सकती है और उसमें अपने विचार रख सकती है। लेकिन सेमीनार में शामिल होने के लिए भी किसी जज को बाध्य नहीं कर सकती।
आपराधिक मामलों के विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता का कहना है कि कानून मंत्री को अधिवक्ता होने के बावजूद कानून की जानकारी नहीं है।
उन्हें यह जानकारी होनी चाहिए कि किसी न्यायाधीश को बतौर प्रमुख सचिव (कानून) के पद पर प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता है।
उनका काम मात्र कानूनी मुद्दों पर सलाह देना है, न कि बैठक बुलाने का कामकाज देखना। वे सरकार के संयोजक नहीं हैं। मंत्री को न्यायपालिका के किसी भी काम में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
उन्होंने कहा कि प्रतिनियुक्ति पर भी सरकार या अन्य विभागों में न्यायाधीश को भेजना गलत है। न्यायाधीश का काम न्याय देना है। कानूनी मुद्दों पर सलाह के लिए लॉ अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
क्या था मामला-
कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने प्रमुख सचिव एएस यादव (कानून) को जिला अदालतों के जजों की बैठक बुलाने के लिए कहा। यादव ने उनके निर्णय पर असहमति जताते हुए स्पष्ट कर दिया कि बैठक बुलाना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। यह अधिकार मात्र मुख्य न्यायाधीश को ही है।
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