दिल्ली के शिक्षा मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया पर आरोप लगा है कि उन्होंने अपने एनजीओ 'कबीर' के पैसे का निजी इस्तेमाल किया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल भी इस एनजीओ कबीर की गवर्निंग बॉडी में शामिल हैं।
गृह मंत्रालय के कंट्रोलर इसकी जांच कर रहे थे। जांच पूरी होने के बाद उनकी ओर से कहा गया है कि मनीष सिसोदिया ने जो खर्च बताए और उसके कागजात दिए, उसमे कोई समानता नहीं दिखती है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जिन अनियमिततताओं के आरोप हैं, उनमें सिसोदिया की पत्नी को बिना रसीद के किराये देना, कर्मचारियों का ब्योरा न होना, कैशबुक का गायब होना, ऐसी यात्राओं के खर्च दिखाए गए हैं जिनका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
हद तो तब हो गई जब एनजीओ के पैसे से मनीष सिसोदिया ने अपनी कार की सर्विसिंग के लिए पेमेंट भी कर दिया।
एनजीओ कबीर के जांच रिपोर्ट में बताया गया कि 2008 से 2011-12 के दौरान आरटीआई के कार्यकर्ताओं को 17.7 लाख रुपये का भुगतान किया गया है, लेकिन जांच करने वाली टीम को इसका कोई डॉक्यूमेंट नहीं दिया गया है। जांच कर रही टीम को एनजीओ के कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी का भी सबूत नहीं मिला।
इस एनजीओ को 2005-06 से 2010-11 के दौरान विदेशों से 2 करोड़ रुपये की मदद मिली। फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेग्युलेशन ऐक्ट के तहत एनजीओ की 2005-06 से 2011-12 के दौरान जांच की गई है।
सिसोदिया ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि इस मामले में कोर्ट से उन्हें क्लीन चिट मिल चुकी है, लेकिन अब राजनीतिक कारणों से इसे तूल दिया जा रहा है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एनजीओ पांडव नगर स्थित उनके घर से चल रहा था और इसके लिए उनकी पत्नी सीमा को 12,000 रुपये प्रतिमाह किराया दिया गया। हालांकि, इस किराए की कोई रसीद उपलब्ध नहीं कराई गई।
कबीर का सीमा के साथ कोई रेंट एग्रीमेंट भी नहीं दिखाया गया। इतना ही नहीं, जब टीम ने 2006 से 2008 की कैशबुक मांगी तो सिसोदिया ने जांच टीम को बताया कि ऑफिस बदलने के क्रम में कहीं गुम हो गईं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिसोदिया को 11 जुलाई 2008 को देहरादून ट्रिप के लिए 17,900 रुपये का भुगतान किया गया लेकिन बिल के मुताबिक गाड़ी दिल्ली-बहराइच-दिल्ली के लिए किराये पर ली गई थी। यह भी नहीं बताया गया कि इस ट्रिप का मकसद क्या था और कितने लोग गए थे। जांच रिपोर्ट में टिप्पणी की गई है कि प्रथम दृष्टया यह मामला धोखाधड़ी का लग रहा है।
गृह मंत्रालय के कंट्रोलर इसकी जांच कर रहे थे। जांच पूरी होने के बाद उनकी ओर से कहा गया है कि मनीष सिसोदिया ने जो खर्च बताए और उसके कागजात दिए, उसमे कोई समानता नहीं दिखती है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जिन अनियमिततताओं के आरोप हैं, उनमें सिसोदिया की पत्नी को बिना रसीद के किराये देना, कर्मचारियों का ब्योरा न होना, कैशबुक का गायब होना, ऐसी यात्राओं के खर्च दिखाए गए हैं जिनका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
हद तो तब हो गई जब एनजीओ के पैसे से मनीष सिसोदिया ने अपनी कार की सर्विसिंग के लिए पेमेंट भी कर दिया।
एनजीओ कबीर के जांच रिपोर्ट में बताया गया कि 2008 से 2011-12 के दौरान आरटीआई के कार्यकर्ताओं को 17.7 लाख रुपये का भुगतान किया गया है, लेकिन जांच करने वाली टीम को इसका कोई डॉक्यूमेंट नहीं दिया गया है। जांच कर रही टीम को एनजीओ के कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी का भी सबूत नहीं मिला।
इस एनजीओ को 2005-06 से 2010-11 के दौरान विदेशों से 2 करोड़ रुपये की मदद मिली। फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेग्युलेशन ऐक्ट के तहत एनजीओ की 2005-06 से 2011-12 के दौरान जांच की गई है।
सिसोदिया ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि इस मामले में कोर्ट से उन्हें क्लीन चिट मिल चुकी है, लेकिन अब राजनीतिक कारणों से इसे तूल दिया जा रहा है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एनजीओ पांडव नगर स्थित उनके घर से चल रहा था और इसके लिए उनकी पत्नी सीमा को 12,000 रुपये प्रतिमाह किराया दिया गया। हालांकि, इस किराए की कोई रसीद उपलब्ध नहीं कराई गई।
कबीर का सीमा के साथ कोई रेंट एग्रीमेंट भी नहीं दिखाया गया। इतना ही नहीं, जब टीम ने 2006 से 2008 की कैशबुक मांगी तो सिसोदिया ने जांच टीम को बताया कि ऑफिस बदलने के क्रम में कहीं गुम हो गईं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिसोदिया को 11 जुलाई 2008 को देहरादून ट्रिप के लिए 17,900 रुपये का भुगतान किया गया लेकिन बिल के मुताबिक गाड़ी दिल्ली-बहराइच-दिल्ली के लिए किराये पर ली गई थी। यह भी नहीं बताया गया कि इस ट्रिप का मकसद क्या था और कितने लोग गए थे। जांच रिपोर्ट में टिप्पणी की गई है कि प्रथम दृष्टया यह मामला धोखाधड़ी का लग रहा है।