
बांद्रा-देहरादून एक्सप्रेस की बोगी आग की लपटों से घिर गई। यात्री जान बचाने के लिए चीखने-चिल्लाने लगे। हर यात्री अपनी जान बचाने की जुगत में था।
इसी बीच दुबले-पतले से दो युवक आग की लपटों के बीच ट्रेन की चेन खींचने की कोशिश करने लगे।
एक के कपड़ों मे आग लग गई, लेकिन उसने कोशिश जारी रखी और अंतत: ट्रेन रुक गई मगर यह फरिश्ता देखते ही देखते आग के हवाले हो गया और दूसरे का भी कुछ पता नहीं चला।
लोगों को बचाते हुए खुद कहीं गुम हो गया
सहारनपुर पहुंचे प्रत्यक्षदर्शी यात्रियों ने इस मंजर का जिक्र छेड़ा तो इन फरिश्तों के प्रति कृतज्ञता में उनकी आंखें भर आईं। इन फरिश्तों का यह बलिदान ही था कि अनेक यात्री बोगी से कूदकर अपनी जान बचाने में सफल रहे।
गुरुवार की शाम 4.15 बजे यह ट्रेन जब यहां पहुंची तो अग्निकांड का खौफनाक मंजर का खौफ सुरक्षित बचे लोगों की आंखों में साफ दिखाई दे रहा था।
यात्रियों ने बताया कि जलती ट्रेन में उस युवक की बहादुरी और आंखों के सामने उसका जिंदा जल जाना बार-बार सामने आ रहा है।
डबडबाती आंखों से बोले, कुछ मत पूछो अगर आज हम जिंदा हैं तो उन्हीं दो फरिश्तों के कारण। आग धीरे-धीरे फैल रही थी मगर, वे इसकी परवाह किए बिना ही चेन खींचकर ट्रेन को रोकने की कोशिश करते रहे।
अफसोस, वे नहीं बचे मगर सैकड़ों लोगों की जिंदगी बचा गए। ट्रेन रुकने के बाद हम सभी यात्रियों की निगाहें उन फरिश्तों को ही तलाश रही थीं, लेकिन अफसोस की वे नहीं मिले।
पावनी ने बचा ली परिवार की जान
बांद्रा देहरादून एक्सप्रेस में अग्निकांड के खौफनाक मंजर के बीच मौत के मुंह से सुरक्षित निकलने वाले प्रभात के परिवार ने जलती ट्रेन की पूरी कहानी बताई।
यह परिवार है देहरादून के डोईवाला के रहने वाले प्रभात और प्रभा का। बांद्रा से आते समय यह परिवार भी दर्दनाक आग के घिरे कोच में फंस चुका था।
मुखिया प्रभात और उनकी बीवी प्रभा ने बताया पहले वह हादसे का शिकार कोच एस-2 में ही सवार थे। आग तो रात करीब एक बजे के आसपास ही लग चुकी थी। लेकिन वे कोच में गहरी नींद में थे।
उनके साथ ही बेटियां पावनी और परिचि बराबर की सीट पर थीं। करीब डेढ़-दो बजे अचानक शोर शुरू हुआ। पावनी के रोने पर वे लोग उठे। कोच की ओर बढ़ती आग के मंजर ने उनके होश उड़ा दिए।
उनकी बोगी में उन्हें पांच यात्री भागते दौड़ते नजर आए। फिर तो वह भी सामान छोड़कर रुकी चुकी गाड़ी से बच्चों को लेकर नीचे कूदे।
नीचे उतरने के बाद तीन कोचों में आग की जो हालत देखी उसे याद करके दिल कांप जाता है। अब भी यकीन नहीं हो रहा कि वे सुरक्षित देहरादून की ओर जा रहे हैं।
इसी बीच दुबले-पतले से दो युवक आग की लपटों के बीच ट्रेन की चेन खींचने की कोशिश करने लगे।
एक के कपड़ों मे आग लग गई, लेकिन उसने कोशिश जारी रखी और अंतत: ट्रेन रुक गई मगर यह फरिश्ता देखते ही देखते आग के हवाले हो गया और दूसरे का भी कुछ पता नहीं चला।
लोगों को बचाते हुए खुद कहीं गुम हो गया
सहारनपुर पहुंचे प्रत्यक्षदर्शी यात्रियों ने इस मंजर का जिक्र छेड़ा तो इन फरिश्तों के प्रति कृतज्ञता में उनकी आंखें भर आईं। इन फरिश्तों का यह बलिदान ही था कि अनेक यात्री बोगी से कूदकर अपनी जान बचाने में सफल रहे।
गुरुवार की शाम 4.15 बजे यह ट्रेन जब यहां पहुंची तो अग्निकांड का खौफनाक मंजर का खौफ सुरक्षित बचे लोगों की आंखों में साफ दिखाई दे रहा था।
यात्रियों ने बताया कि जलती ट्रेन में उस युवक की बहादुरी और आंखों के सामने उसका जिंदा जल जाना बार-बार सामने आ रहा है।
डबडबाती आंखों से बोले, कुछ मत पूछो अगर आज हम जिंदा हैं तो उन्हीं दो फरिश्तों के कारण। आग धीरे-धीरे फैल रही थी मगर, वे इसकी परवाह किए बिना ही चेन खींचकर ट्रेन को रोकने की कोशिश करते रहे।
अफसोस, वे नहीं बचे मगर सैकड़ों लोगों की जिंदगी बचा गए। ट्रेन रुकने के बाद हम सभी यात्रियों की निगाहें उन फरिश्तों को ही तलाश रही थीं, लेकिन अफसोस की वे नहीं मिले।
पावनी ने बचा ली परिवार की जान
बांद्रा देहरादून एक्सप्रेस में अग्निकांड के खौफनाक मंजर के बीच मौत के मुंह से सुरक्षित निकलने वाले प्रभात के परिवार ने जलती ट्रेन की पूरी कहानी बताई।
यह परिवार है देहरादून के डोईवाला के रहने वाले प्रभात और प्रभा का। बांद्रा से आते समय यह परिवार भी दर्दनाक आग के घिरे कोच में फंस चुका था।
मुखिया प्रभात और उनकी बीवी प्रभा ने बताया पहले वह हादसे का शिकार कोच एस-2 में ही सवार थे। आग तो रात करीब एक बजे के आसपास ही लग चुकी थी। लेकिन वे कोच में गहरी नींद में थे।
उनके साथ ही बेटियां पावनी और परिचि बराबर की सीट पर थीं। करीब डेढ़-दो बजे अचानक शोर शुरू हुआ। पावनी के रोने पर वे लोग उठे। कोच की ओर बढ़ती आग के मंजर ने उनके होश उड़ा दिए।
उनकी बोगी में उन्हें पांच यात्री भागते दौड़ते नजर आए। फिर तो वह भी सामान छोड़कर रुकी चुकी गाड़ी से बच्चों को लेकर नीचे कूदे।
नीचे उतरने के बाद तीन कोचों में आग की जो हालत देखी उसे याद करके दिल कांप जाता है। अब भी यकीन नहीं हो रहा कि वे सुरक्षित देहरादून की ओर जा रहे हैं।
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