Friday, January 10, 2014

सरकार ने माना, कोयला आवंटन में हुई गड़बड़ी

Coal blocks allocation Centre tells SC something went wrong
सरकार ने अच्छी मंशा से ही कोयला ब्लॉक आवंटित करने के फैसले लिए थे, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ गलतियां हुई हैं। इन गलतियों से बचने के लिए बेहतर तरीका अपनाया जा सकता था।

- गुलाम ई. वाहनवती

कोल ब्लॉक घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट में घिरी केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को यह स्वीकार किया कि कोयला खदानों के आवंटन में कहीं कुछ गलत हुआ है।

इससे ज्यादा बेहतर तरीके से काम किया जा सकता है। जबकि पहले सरकार का कहना था कि आवंटन तो महज आशय पत्र है। इससे प्राकृतिक संसाधनों पर कंपनियों को कोई अधिकार नहीं प्राप्त होता। मगर आवंटन में सीमित भूमिका निभाने वाले सात राज्यों के जवाब के बाद केंद्र के रुख का सुर बदल गया।

जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती ने कोयला खदानों के आवंटन में सरकार की गलती स्वीकार करते हुए कहा कि हमने ईमानदारी से निर्णय किए। लेकिन लगता है कि कुछ गलत हुआ है। हम कह सकते हैं कि कहीं कुछ गलत हुआ है और कुछ सुधार करने की जरूरत है।

वाहनवती ने यह प्रतिक्रिया उस समय व्यक्त की, जब न्यायाधीशों ने कहा कि यह कवायद कहीं अधिक बेहतर तरीके से की जा सकती थी। अटॉर्नी जनरल ने कहा, 'यह सब कुछ ज्यादा बेहतर तरीके से किया जा सकता था। मैं आपके विचार से सहमत हूं।'

मसले पर रुख स्पष्ट करे सरकार
दरअसल पीठ ने सुनवाई के शुरू होते ही चुनिंदा कोयला खदानों के आवंटन निरस्त करने के प्रति केंद्र के दृष्टिकोण के संबंध में अटॉर्नी जनरल से जानना चाहा। अटॉर्नी जनरल ने जवाब में कहा कि सरकार अगले सप्ताह इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करेगी।

सितंबर, 2013 में अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि कोयला खदानों का आवंटन तो महज आशय पत्र है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर कंपनियों को कोई अधिकार नहीं देता, जिसके बारे में राज्य सरकार ही निर्णय करेंगी।

वाहनवती ने तब यह भी कहा था कि कंपनियों को कोयला खदान आवंटित करने का निर्णय तो पहला चरण है और तमाम मंजूरी प्राप्त करने के बाद जब कंपनियां खनन शुरू करेंगी। तभी उन्हें कोयले पर अधिकार मिलेगा।

मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे खनन वाले राज्यों ने शीर्षस्थ अदालत से कहा था कि कोयला खदानों के आवंटन पर पूरी तरह से केंद्र का नियंत्रण है। इस मामले में उनकी भूमिका तो बहुत ही कम है।

सर्वोच्च अदालत इस मामले में कोयला खदानों के आवंटन के नियमों का उल्लंघन किए जाने के आधार पर 1993 से किए गए आवंटनों को निरस्त करने के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि इस प्रक्रिया के दौरान चुनिंदा कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया है।

राज्यों ने भी केंद्र को बताया जिम्मेदार

राज्यों ने भी कोल ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी के लिए पूरी तरह से केंद्र सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया है।

पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के वकीलों ने दलील दी कि कोयला ब्लॉकों के आवंटन में उनकी भूमिका नगण्य थी।

उन्होंने कहा कि आवंटन में अनियमितताओं के लिए केंद्र ही जिम्मेदार है। बुधवार को महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश जैसे कांग्रेस शासित राज्यों ने भी कोल ब्लॉक आवंटन में अपनी भूमिका से इंकार कर चुके हैं।

इस्तीफा दें प्रधानमंत्री: भाजपा
भाजपा ने अटार्नी जनरल की ओर से कोल ब्लाक आवंटन में चूक की बात स्वीकार किए जाने के बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग दोहराई है।

पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि सरकार के वकील ने खुद यह बात मानी है कि कोल ब्लाक आवंटन यदि पारदर्शी तरीके से किया जाता तो अच्छा होता।

ऐसे में घोटाले की जिम्मेदारी लेते हुए प्रधानमंत्री को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि उस समय कोयला मंत्रालय वही संभाल रहे थे और सारे आवंटन उनके ही हस्ताक्षर से हुए।

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