
सरकार की मेहरबानी आने वाले समय में क्या लोगों को राहत देगी या फिर डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी?
डीजल की बिक्री में आई गिरावट को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्रालय इसकी थोक कीमत घटाने पर विचार कर रहा है।
पेट्रोलियम सचिव विवेक राय ने कहा कि हम लोग किरीट पारीख समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए अंतर मंत्रालयीय स्तर पर संपर्क कर रहे हैं।
सरकार ने पिछले वर्ष जनवरी में थोक खरीदारों से बाजार मूल्य पर भुगतान करने को कहा था। डीजल पर दी जाने वाली सब्सिडी को कम करने के उद्देश्य से उसके बाद से खुदरा में सब्सिडी प्राप्त डीजल की कीमत में प्रत्येक माह बढ़ोतरी की जाती रही है।
राय ने कहा कि डीजल पर दी जाने वाली सब्सिडी की हिस्सेदारी की समीक्षा करने की भी जरूरत है, ताकि तेल कंपनियां कच्चे तेल की बिक्री 65 डॉलर प्रति डॉलर की दर से कर सकें। तेल खोज एवं खनन क्षेत्र की कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) पहले से ही उत्पादन की तुलना में डीजल की बिक्री में आई गिरावट की शिकायत करती रही है।
ओएनजीसी और ऑयल इंडिया जैसी सरकारी तेल कंपनियां सब्सिडी के बढ़ते बोझ के कारण खोज और खनन कार्यों में ज्यादा निवेश करने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि तेल और प्राकृतिक गैस के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां यह कंपनियां बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का खनन कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए खनन गतिविधियों पर काफी खर्च करना पडे़गा। सब्सिडी का बोझ बढ़ने से इनके लिए इस काम में बड़ी पूंजी लगाना मुश्किल हो रहा है।
पेट्रोलियम सचिव ने कहा कि बॉम्बे हाई और कृष्णा गोदावरी बेसिन ऐसे क्षेत्र हैं, जहां खनन गतिविधियां बढ़ाने की प्रचुर संभावनाएं हैं। यहां कम से कम 7 करोड़ टन कच्चे तेल के भंडार मौजूद हैं। अभी यह कंपनियां खनन गतिविधियों पर 40 से 42 डॉलर प्रति बैरल ही खर्च कर पाती हैं, जबकि इनके ज्यादा दोहन के लिए कमसे 65 डॉलर प्रति बैरल खर्च किया जाना चाहिए।
सब्सिडी का बोझ ज्यादा होने से इतना पैसा खर्च करना इन कंपनियों के बस में नहीं है। राय ने कहा कि कच्चा तेल 105 डॉलर प्रति बैरल की दर से आयात करने से बेहतर है कि घरेलू स्तर पर इसके खनन के लिए 65 डॉलर प्रति बैरल खर्च किया जाए। ऐसे में तेल कंपनियों के सब्सिडी बोझ की समीक्षा जरूरी है।
डीजल की बिक्री में आई गिरावट को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्रालय इसकी थोक कीमत घटाने पर विचार कर रहा है।
पेट्रोलियम सचिव विवेक राय ने कहा कि हम लोग किरीट पारीख समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए अंतर मंत्रालयीय स्तर पर संपर्क कर रहे हैं।
सरकार ने पिछले वर्ष जनवरी में थोक खरीदारों से बाजार मूल्य पर भुगतान करने को कहा था। डीजल पर दी जाने वाली सब्सिडी को कम करने के उद्देश्य से उसके बाद से खुदरा में सब्सिडी प्राप्त डीजल की कीमत में प्रत्येक माह बढ़ोतरी की जाती रही है।
राय ने कहा कि डीजल पर दी जाने वाली सब्सिडी की हिस्सेदारी की समीक्षा करने की भी जरूरत है, ताकि तेल कंपनियां कच्चे तेल की बिक्री 65 डॉलर प्रति डॉलर की दर से कर सकें। तेल खोज एवं खनन क्षेत्र की कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) पहले से ही उत्पादन की तुलना में डीजल की बिक्री में आई गिरावट की शिकायत करती रही है।
ओएनजीसी और ऑयल इंडिया जैसी सरकारी तेल कंपनियां सब्सिडी के बढ़ते बोझ के कारण खोज और खनन कार्यों में ज्यादा निवेश करने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि तेल और प्राकृतिक गैस के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां यह कंपनियां बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का खनन कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए खनन गतिविधियों पर काफी खर्च करना पडे़गा। सब्सिडी का बोझ बढ़ने से इनके लिए इस काम में बड़ी पूंजी लगाना मुश्किल हो रहा है।
पेट्रोलियम सचिव ने कहा कि बॉम्बे हाई और कृष्णा गोदावरी बेसिन ऐसे क्षेत्र हैं, जहां खनन गतिविधियां बढ़ाने की प्रचुर संभावनाएं हैं। यहां कम से कम 7 करोड़ टन कच्चे तेल के भंडार मौजूद हैं। अभी यह कंपनियां खनन गतिविधियों पर 40 से 42 डॉलर प्रति बैरल ही खर्च कर पाती हैं, जबकि इनके ज्यादा दोहन के लिए कमसे 65 डॉलर प्रति बैरल खर्च किया जाना चाहिए।
सब्सिडी का बोझ ज्यादा होने से इतना पैसा खर्च करना इन कंपनियों के बस में नहीं है। राय ने कहा कि कच्चा तेल 105 डॉलर प्रति बैरल की दर से आयात करने से बेहतर है कि घरेलू स्तर पर इसके खनन के लिए 65 डॉलर प्रति बैरल खर्च किया जाए। ऐसे में तेल कंपनियों के सब्सिडी बोझ की समीक्षा जरूरी है।
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