केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश ए.के. गांगुली को अपनी लॉ इटर्न के साथ यौन शोषण मामले में पद से हटाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
पीटीआई के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए.के. गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग पर सरकार 'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस' यानी राष्ट्रपति संदर्भ की तैयारी में थी।
ए.के. गांगुली इस समय पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार गांगुली के एक लॉ इंटर्न की ओर से लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से इनकार करने के अगले ही पीड़िता ने जस्टिस गांगुली की कड़ी आलोचना करते हुए उनकी पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के संकेत दिए थे।
इंटर्न ने अपने ब्लॉग 'लीगली इंडिया' पर यह संकेत देते हुए लिखा कि जो लोग अफवाहें फैला रहे हैं और मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं, वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि मुद्दा उलझाया जा सके और वे जांच और जवाबदेही से बच निकलें।
जस्टिस गांगुली ने सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर खुद पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया था।
'छवि धूमिल करने की कोशिश'
उन्होंने अपने खिलाफ गठित सुप्रीम कोर्ट की समिति पर भी सवाल उठाते हुए उन्होंने लिखा था, मुझे लगता है कि यह मेरी छवि धूमिल करने की स्पष्ट कोशिश है।
पूर्व न्यायाधीश की इस चिट्ठी के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का संकेत देते हुए इंटर्न ने ब्लॉग में लिखा है कि घटना के बाद जब वह कोलकाता में अपने कॉलेज लौटी तो उसने अलग-अलग समय पर अपने कुछ फैकल्टी से बातचीत की।
उसने ब्लॉग पर लिखा, 'चूंकि घटना इंटर्नशिप के दौरान हुई थी और विश्वविद्यालय की इंटर्नशिप के दौरान महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ कोई नीति नहीं है तो मुझे संकेत दिया गया कि कोई भी कार्रवाई निष्प्रभावी होगी।'
मुझे यह भी सूचित किया गया कि मेरे पास केवल एक ही रास्ता है कि पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जाए जो मैं करना नहीं चाहती थी।
बहरहाल, मैं महसूस कर रही थी कि युवा विधि छात्रों को सतर्क करना जरूरी है इसलिए मैंने ब्लॉग पोस्ट के जरिए ऐसा करने का रास्ता चुना।
इंटर्न ने कहा है कि जस्टिस गांगुली के खिलाफ आरोपों की जांच करने वाली तीन जजों की समिति के समक्ष गवाही के दौरान उसने स्थिति की गंभीरता देखते हुए कार्यवाही की गोपनीयता और इस मामले में शामिल हर किसी की निजता सुनिश्चित करने की अपील की थी।
उसने लिखा है, मैंने तीन सदस्यीय जजों की समिति की नीयत और क्षेत्राधिकार पर किसी भी समय सवाल नहीं उठाया और पूरा भरोसा था कि वे मेरे बयानों की सचाई को मानेंगे।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय समिति ने जांच के बाद कहा था कि पीड़िता का लिखित और मौखिक बयान प्रथम दृष्टया खुलासा करता है कि पिछले साल 24 दिसंबर को होटल के कमरे में न्यायाधीश ने उसके साथ 'यौन प्रकृति का अस्वागतयोग्य व्यवहार' किया था।
ब्लॉग पर इंटर्न
जो भी यह दावा कर रहा है कि मेरे बयान गलत हैं, वह न केवल मेरी बेइज्जती कर रहा है बल्कि सुप्रीम कोर्ट का भी अपमान कर रहा है।
मैं अपील करती हूं कि इस बात का संज्ञान लिया जाए कि यह मेरे विवेकाधीन है कि मैं उचित समय पर उचित कार्यवाही आगे बढ़ा सकती हूं।
मैं कहना चाहती हूं कि मेरी स्वायत्तता का पूरी तरह सम्मान किया जाए। मैं कहना चाहूंगी कि मैंने पूरे मामले में, इस स्थिति की गंभीरता ध्यान में रखते हुए, बेहद जिम्मेदारी के साथ काम किया है। 18 नवंबर को समिति के सामने पेश होने और बयान देने के बाद मैंने समिति को अपने हस्ताक्षर के साथ एक लिखित बयान भी सौंपा था।
29 नवंबर को मैंने अतिरक्त महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह को एक हलफनामा भेजकर उसमें यौन शोषण की घटना से जुड़ी जानकारियां दीं और उनसे उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया। हलफनामे में वहीं चीजें थीं जो मैंने समिति के सामने दिए बयान में कहीं।
समिति की रिपोर्ट के हिस्से सार्वजनिक करने के बाद भी कई प्रतिष्ठित नागरिक और कानूनविदों ने समिति के निष्कर्षों का उपहास करना और मुझे बदनाम करना जारी रखा। इस कारण मैंने अपनी और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा की रक्षा के लिए अपने बयान के ब्यौरे स्पष्ट करना जरूरी समझा।
यह था पीड़िता का हलफनामा
गांगुली ने मुझे क्रिसमस की पूर्व संध्या पर एक रिपोर्ट पूरी करने के लिए अपने होटल के कमरे में बुलाया था। उन्होंने मुझसे कहा कि रिपोर्ट अगले दिन जमा करनी है और मैं होटल में हीं रुककर पूरी रात काम करूं। मैंने इनकार करते हुए कहा कि मुझे काम जल्द पूरा करना है और अपने पीजी हॉस्टल लौटना है।
कुछ देर बाद न्यायाधीश ने रेड वाइन की बोतल निकाली और वाइन पीते हुए कहा कि चूंकि तुम दिनभर काम करके थक गई होगी, तुम मेरे बेड रूम में चली जाओ और आराम कर लो।
उन्होंने यह भी कहा- तुम बहुत सुंदर हो। मैं तुरंत अपनी जगह से उठी और जब तक कुछ कहती उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर कहा कि तुम्हें पता है कि नहीं कि मैं तुम्हारे प्रति आकर्षित हूं?....लेकिन मैं तुम्हें पसंद करता हूं, मैं तुमसे प्यार करता हूं। जब मैंने वहां से हटने की कोशिश की तो उन्होंने मेरा हाथ चूमते हुआ फिर कहा कि वह मुझसे प्यार करते हैं।
'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस'
एक लॉ इंटर्न के यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए. के. गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग पर सरकार 'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस' यानी राष्ट्रपति संदर्भ की तैयारी में है।
इसके तहत राष्ट्रपति के माध्यम से इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय प्राप्त की जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय की राय को पहले केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी हासिल करनी होगी और उसके बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। फिर राष्ट्रपति के आदेश से गांगुली को उनके पद से हटाया जा सकेगा।
इससे पहले 122 टेलीकॉम लाइसेंस रद्द होने के बाद 2012 में सरकार ने प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मांगा था। इसमें पूछा गया था कि सरकार के नीतिगत मामलों में, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन भी शामिल है, न्यायालय किस हद तक दखल दे सकता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति से राय मांगी जाती है। अनुच्छेद 143 (1) में कहा गया है कि किसी भी समय जब राष्ट्रपति के सन्मुख यह प्रकट होता है कि कोई विधि या तथ्य का प्रश्न उपस्थित हो गया है या होने की संभावना है, जो जनमहत्व का है और जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श प्राप्त किया जाना आवश्यक है, तो वह ऐसे प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय को विचार करने और परामर्श देने के लिए संप्रेषित कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ऐसे प्रश्न पर ऐसी सुनवाई करने के उपरांत, जिसे वह उचित समझता है, राष्ट्रपति को अपने परामर्श से अवगत करा सकता है। इससे पहले 2004 में सरकार ने पंजाब और हरियाणा राज्यों के बीच नदी के पानी के बंटवारे के मामले में राष्ट्रपति संदर्भ का सहारा लिया था।
पीटीआई के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए.के. गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग पर सरकार 'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस' यानी राष्ट्रपति संदर्भ की तैयारी में थी।
ए.के. गांगुली इस समय पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार गांगुली के एक लॉ इंटर्न की ओर से लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से इनकार करने के अगले ही पीड़िता ने जस्टिस गांगुली की कड़ी आलोचना करते हुए उनकी पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के संकेत दिए थे।
इंटर्न ने अपने ब्लॉग 'लीगली इंडिया' पर यह संकेत देते हुए लिखा कि जो लोग अफवाहें फैला रहे हैं और मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं, वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि मुद्दा उलझाया जा सके और वे जांच और जवाबदेही से बच निकलें।
जस्टिस गांगुली ने सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर खुद पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया था।
'छवि धूमिल करने की कोशिश'
उन्होंने अपने खिलाफ गठित सुप्रीम कोर्ट की समिति पर भी सवाल उठाते हुए उन्होंने लिखा था, मुझे लगता है कि यह मेरी छवि धूमिल करने की स्पष्ट कोशिश है।
पूर्व न्यायाधीश की इस चिट्ठी के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का संकेत देते हुए इंटर्न ने ब्लॉग में लिखा है कि घटना के बाद जब वह कोलकाता में अपने कॉलेज लौटी तो उसने अलग-अलग समय पर अपने कुछ फैकल्टी से बातचीत की।
उसने ब्लॉग पर लिखा, 'चूंकि घटना इंटर्नशिप के दौरान हुई थी और विश्वविद्यालय की इंटर्नशिप के दौरान महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ कोई नीति नहीं है तो मुझे संकेत दिया गया कि कोई भी कार्रवाई निष्प्रभावी होगी।'
मुझे यह भी सूचित किया गया कि मेरे पास केवल एक ही रास्ता है कि पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जाए जो मैं करना नहीं चाहती थी।
बहरहाल, मैं महसूस कर रही थी कि युवा विधि छात्रों को सतर्क करना जरूरी है इसलिए मैंने ब्लॉग पोस्ट के जरिए ऐसा करने का रास्ता चुना।
इंटर्न ने कहा है कि जस्टिस गांगुली के खिलाफ आरोपों की जांच करने वाली तीन जजों की समिति के समक्ष गवाही के दौरान उसने स्थिति की गंभीरता देखते हुए कार्यवाही की गोपनीयता और इस मामले में शामिल हर किसी की निजता सुनिश्चित करने की अपील की थी।
उसने लिखा है, मैंने तीन सदस्यीय जजों की समिति की नीयत और क्षेत्राधिकार पर किसी भी समय सवाल नहीं उठाया और पूरा भरोसा था कि वे मेरे बयानों की सचाई को मानेंगे।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय समिति ने जांच के बाद कहा था कि पीड़िता का लिखित और मौखिक बयान प्रथम दृष्टया खुलासा करता है कि पिछले साल 24 दिसंबर को होटल के कमरे में न्यायाधीश ने उसके साथ 'यौन प्रकृति का अस्वागतयोग्य व्यवहार' किया था।
ब्लॉग पर इंटर्न
जो भी यह दावा कर रहा है कि मेरे बयान गलत हैं, वह न केवल मेरी बेइज्जती कर रहा है बल्कि सुप्रीम कोर्ट का भी अपमान कर रहा है।
मैं अपील करती हूं कि इस बात का संज्ञान लिया जाए कि यह मेरे विवेकाधीन है कि मैं उचित समय पर उचित कार्यवाही आगे बढ़ा सकती हूं।
मैं कहना चाहती हूं कि मेरी स्वायत्तता का पूरी तरह सम्मान किया जाए। मैं कहना चाहूंगी कि मैंने पूरे मामले में, इस स्थिति की गंभीरता ध्यान में रखते हुए, बेहद जिम्मेदारी के साथ काम किया है। 18 नवंबर को समिति के सामने पेश होने और बयान देने के बाद मैंने समिति को अपने हस्ताक्षर के साथ एक लिखित बयान भी सौंपा था।
29 नवंबर को मैंने अतिरक्त महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह को एक हलफनामा भेजकर उसमें यौन शोषण की घटना से जुड़ी जानकारियां दीं और उनसे उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया। हलफनामे में वहीं चीजें थीं जो मैंने समिति के सामने दिए बयान में कहीं।
समिति की रिपोर्ट के हिस्से सार्वजनिक करने के बाद भी कई प्रतिष्ठित नागरिक और कानूनविदों ने समिति के निष्कर्षों का उपहास करना और मुझे बदनाम करना जारी रखा। इस कारण मैंने अपनी और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा की रक्षा के लिए अपने बयान के ब्यौरे स्पष्ट करना जरूरी समझा।
यह था पीड़िता का हलफनामा
गांगुली ने मुझे क्रिसमस की पूर्व संध्या पर एक रिपोर्ट पूरी करने के लिए अपने होटल के कमरे में बुलाया था। उन्होंने मुझसे कहा कि रिपोर्ट अगले दिन जमा करनी है और मैं होटल में हीं रुककर पूरी रात काम करूं। मैंने इनकार करते हुए कहा कि मुझे काम जल्द पूरा करना है और अपने पीजी हॉस्टल लौटना है।
कुछ देर बाद न्यायाधीश ने रेड वाइन की बोतल निकाली और वाइन पीते हुए कहा कि चूंकि तुम दिनभर काम करके थक गई होगी, तुम मेरे बेड रूम में चली जाओ और आराम कर लो।
उन्होंने यह भी कहा- तुम बहुत सुंदर हो। मैं तुरंत अपनी जगह से उठी और जब तक कुछ कहती उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर कहा कि तुम्हें पता है कि नहीं कि मैं तुम्हारे प्रति आकर्षित हूं?....लेकिन मैं तुम्हें पसंद करता हूं, मैं तुमसे प्यार करता हूं। जब मैंने वहां से हटने की कोशिश की तो उन्होंने मेरा हाथ चूमते हुआ फिर कहा कि वह मुझसे प्यार करते हैं।
'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस'
एक लॉ इंटर्न के यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए. के. गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग पर सरकार 'प्रेजिडेंशियल रेफरेंस' यानी राष्ट्रपति संदर्भ की तैयारी में है।
इसके तहत राष्ट्रपति के माध्यम से इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय प्राप्त की जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय की राय को पहले केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी हासिल करनी होगी और उसके बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। फिर राष्ट्रपति के आदेश से गांगुली को उनके पद से हटाया जा सकेगा।
इससे पहले 122 टेलीकॉम लाइसेंस रद्द होने के बाद 2012 में सरकार ने प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मांगा था। इसमें पूछा गया था कि सरकार के नीतिगत मामलों में, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन भी शामिल है, न्यायालय किस हद तक दखल दे सकता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति से राय मांगी जाती है। अनुच्छेद 143 (1) में कहा गया है कि किसी भी समय जब राष्ट्रपति के सन्मुख यह प्रकट होता है कि कोई विधि या तथ्य का प्रश्न उपस्थित हो गया है या होने की संभावना है, जो जनमहत्व का है और जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श प्राप्त किया जाना आवश्यक है, तो वह ऐसे प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय को विचार करने और परामर्श देने के लिए संप्रेषित कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ऐसे प्रश्न पर ऐसी सुनवाई करने के उपरांत, जिसे वह उचित समझता है, राष्ट्रपति को अपने परामर्श से अवगत करा सकता है। इससे पहले 2004 में सरकार ने पंजाब और हरियाणा राज्यों के बीच नदी के पानी के बंटवारे के मामले में राष्ट्रपति संदर्भ का सहारा लिया था।
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