Saturday, January 11, 2014

FIR में नाम नहीं होने पर भी चलेगा मुकदमा

Court can try a person even if not named as accused supreme court
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस ने आरोपपत्र या एफआईआर में जिस व्यक्ति को अभियुक्त नहीं बनाया है और ट्रायल के दौरान उसके खिलाफ पहली नजर में सबूत आते हैं, तो ऐसे में अदालत उस व्यक्ति को आरोपी के रूप में समन कर सकती है।

संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि इसके लिए अदालत को गवाह से जिरह तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। गवाह के बयान होने पर अगर अदालत समझती है कि जिस व्यक्ति को कटघरे में खड़ा होना चाहिए था, वह अभियुक्त के रूप में कोर्ट में नहीं लाया गया तो ट्रायल कोर्ट उसे समन करके तलब कर सकती है।

चीफ जस्टिस पी सदाशिवम, जस्टिस बीएस चौहान, जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एसए बोबडे की संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों तथा देश की विभिन्न हाईकोर्ट के विरोधाभासी निर्णयों को स्पष्ट करते हुए सीआरपीसी की धारा 319 की बड़े स्तर पर व्याख्या की है।

फौजदारी कानून में संविधान पीठ के इस फैसले को बेहद अहम माना जा रहा है। हालांकि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत अदालतें नए बनाए गए अभियुक्त को समन करती रही हैं। लेकिन अदालतें यह अधिकार किस समय और ट्रायल के किस चरण में इस्तेमाल करेंगी, इस पर विभिन्न अदालतों के फैसलों ने पेचीदा बना दिया था।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के परस्पर विरोधी फैसलों से निचली अदालतों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इस मुद्दे पर संविधान पीठ के फैसले से स्थिति स्पष्ट हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 319 का इस्तेमाल आरोप निर्धारित होने के बाद गवाही शुरू होने पर किया जा सकता है। गवाही के दौरान किसी ऐसे शख्स के खिलाफ सबूत आ गए हैं जिसे पुलिस या जांच एजेंसी ने आरोपपत्र में अभियुक्त नहीं बनाया है तो ट्रायल कोर्ट उसे समन कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने जांच-पड़ताल और ट्रायल में अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि आरोपपत्र दायर होने के बाद भी छोड़े गए व्यक्ति को अभियुक्त के रूप में समन कर सकती है। लेकिन यह कार्रवाई सीआरपीसी की धारा 193 के तहत की जा सकती है।

मजिस्ट्रेट या सत्र अदालत को अधिकार है कि वह अभियोग निर्धारित करने से पहले पुलिस की ओर से सबूतों को तौलकर ऐसे व्यक्ति को अभियुक्त के रूप में समन कर सकती है जिसे जानबूझकर या किसी अन्य कारण से आरोपपत्र में अभियुक्तों की सूची में नामजद नहीं किया गया है।

आरोपपत्र के कॉलम दो सबूतों के अभाव में अभियुक्त न बनाए गए व्यक्ति को भी धारा 319 के तहत कटघरे तक लाकर उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 319 के तहत अभियुक्त को समन करते समय सबूत का अर्थ भी अलग है। यह सबूत गवाही के दौरान आने चाहिए। पुलिस की ओर से पेश सबूतों के आधार पर धारा 319 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान शुरू होने पर नए बनाए गए अभियुक्त को समन किया जा सकता है।

ट्रायल कोर्ट गवाह से जिरह का इंतजार करने के लिए विवश नहीं है। अगर अदालत को लगता है कि गवाह के बयान के दौरान ही पर्याप्त सबूत आते हैं और अदालत इस बाबत से संतुष्ट है कि छोड़ा गया व्यक्ति अदालत में आए सबूतों के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है तो ट्रायल कोर्ट बिना किसी हिचक के ऐसे व्यक्ति को तलब कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 319 को अमल में लाने के लिए अदालत की संतुष्टि का पैमाना उन अभियुक्तों से अलग होगा जिन्हें मूल रूप से मुलजिम बनाया गया है। बाद में बनाए गए अभियुक्त के खिलाफ सबूत निश्चित में अधिक ठोस होने चाहिए। क्योंकि नए अभियुक्त के आने से ट्रायल में देरी होगी। इस कारण सबूत ठोस किस्म का होना चाहिए।

संविधान पीठ ने यह भी कहा कि धारा 319 का इस्तेमाल ऐसे व्यक्ति के लिए भी किया जा सकता है जिसका नाम एफआईआर में है और जिसे आरोपपत्र में अभियुक्त नहीं बनाया गया है।

इस कानून के तहत ऐसे शख्स को भी समन किया जा सकता है जिसे अदालत आरोप मुक्त कर चुकी है। लेकिन इसके लिए सीआरपीसी की धारा 300 और 398 का पालन भी अनिवार्य है।

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