Saturday, January 11, 2014

‘सत्याग्रह: ट्रूथ फोर्स’ में दिखेगी रेत माफियाओं की हकीकत

Documentary on India's sand mining mafia to screen at MIFF
देश में गंगा की तटों से रेत के अवैध खनन पर बनी ऑस्ट्रेलियाई फिल्मकार लिजा सबीना हार्ने की डॉक्यूमेंट्री 'सत्याग्रह: ट्रूथ फोर्स' मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (एमआईएफएफ) में दिखाई जाएगी।

इसने पिछले साल दिल्ली इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फीचर डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार जीता था। डॉक्यूमेंट्री में उन भारतीय संतों की कहानी दिखाई गई है, जो गंगा की तटों पर रेत की खुदाई का विरोध कर रहे हैं।

हार्ने ने कहा, 'मैं बहुत खुश हूं कि मेरी फिल्म को एमआईएफएफ में एंट्री मिली। मेरा मानना है कि समारोह में डॉक्यूमेंट्री फिल्म को एंट्री मिलने से हम इस मुद्दे को लोगों के बीच ले जा सकेंगे।'

फिल्म में अंधाधुंध खनन करने वाले रेत माफियाओं और इसमें शामिल राजनीतिज्ञों के खिलाफ 2011 से सत्याग्रह कर रहे संतों की जीवनी दिखाई गई है। इसमें साधुओं को धमकाने, पीटने, जेल जाने और उनकी हत्या की कहानी भी है। फिल्म में स्वामी शिवानंद के पवित्र नदी को बचाने की कोशिशों को भी दर्शाया गया है।

स्वामी शिवानंद ने कहा, 'मैं बद्रीनाथ आने के लिए लिसा को धन्यवाद देता हूं। हम गंगा को माफियाओं द्वारा नष्ट नहीं होने देंगे। अगर एक साधु मरा तो दूसरा उठ खड़ा होगा।'

उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया के तीन सबसे बडे़ सीमेंट उत्पादकों में से है और यह फिल्म नदी के पाटों से रेत और पत्थरों के खनन से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान पर भी सवाल खडे़ करती है। पिछले साल उत्तराखंड में भयानक बाढ़ का कहर इसका गवाह है।

पर्यावरणविद वंदना शिवा कहती हैं, 'यह कहानी भारत के भविष्य के लिहाज से अहम है। सच्चाई है कि ये साधु मजबूती से खडे़ हैं। फिल्म में साफ तौर पर दिखाया गया है कि माफियाओं और नेताओं द्वारा पर्यावरण को नजरअंदाज करने से इसे खासा नुकसान पहुंच रहा है।'

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