Saturday, January 11, 2014

यहां देर में बच्चे पैदा करने पर मिल रहा ईनाम

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छत्तीसगढ में जनसंख्या नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक अनूठी पेशकश की है। सरकार ने बच्चे पैदा करने में देरी करने वालों को पुरस्कृत करने का फैसला किया है।

सरकार ने घोषणा की है कि शादी के कम से कम दो साल बाद पहले बच्चे को जन्म देने वाले दंपत्ति को बेटे के जन्म पर 10 हजार रुपए और बेटी के जन्म पर 12 हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।

यह योजना राज्य में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों के लिए शुरू की गई है।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल के अनुसार "इस योजना के प्रचार-प्रसार के लिए खास निर्देश दिए गए हैं। हमें उम्मीद है कि इस योजना का सकारात्मक असर होगा।"

पहली संतान के बाद दूसरी संतान के जन्म में कम से कम तीन साल का अंतर रखने और बच्चे के जन्म के एक साल के भीतर परिवार नियोजन के स्थायी उपाय अपनाने वाले दंपत्ति को बेटे के जन्म पर पांच हजार रुपए और बेटी के जन्म पर सात हजार रुपए का अतिरिक्त पुरस्कार राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र के रूप में दिया जाएगा।

जनसंख्या दर में वृद्धि

जनसंख्या नियंत्रण का उद्देश्य आगे बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लड़कियों के विवाह की आयु और बच्चों के जन्म में अंतर बढ़ाने के लिए जनसंख्या स्थिरता कोष के जरिए 'प्रेरणा-एक उत्तरदायी पितृत्व रणनीति' नामक योजना शुरू की गई है।

इस योजना के तहत ऐसे दंपत्तियों को चिह्नित कर पुरस्कृत करने का निर्णय लिया गया है, जो कम उम्र में शादी करने की परंपरा तोड़ते हैं और बच्चों के जन्म में अंतर रखते हैं।

जनसंख्या के मामले में भारत में छत्तीसगढ का नौंवा स्थान है।

2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी दो करोड 55 लाख से ज्यादा है। कुल 56 लाख परिवारों में 48 लाख परिवार गरीब हैं।

जनगणना के आंकडे बताते हैं कि साल 2001 में छत्तीसगढ की कुल जनसंख्या दो करोड आठ लाख के करीब थी जो 2011 में बढ़कर दो करोड 55 लाख से ज्यादा हो गई।

इस प्रकार राज्य की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 22।61 प्रतिशत थी, जबकि इस दौरान देश की जनसंख्या वृद्धि दर 17।6 प्रतिशत थी यानी देश की तुलना में राज्य में जनसंख्या वृद्धि दर पांच प्रतिशत अधिक थी।

यहां तक कि 1991 से 2001 की अवधि छत्तीसगढ की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 18।27% थी। यानी इन दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर में छत्तीसगढ में 4।34 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।

'आदिवासी केंद्रित योजनाएं'
छत्तीसगढ में सरकार ने इससे पहले नगरपालिका और नगरीय निकाय संस्थाओं में दो से अधिक बच्चों के माता-पिता के चुनाव लडने पर प्रतिबंध लगा रखा था।

इस कारण कई लोगों को तीसरी संतान पैदा होने के बाद अपना पद छोडना पडा था। हालांकि बाद में सरकार ने इस नियम को समाप्त कर दिया।

इसी तरह सरकारी नौकरी में भी राज्य सरकार ने दो से अधिक संतान वालों को नौकरी के लिए अपात्र घोषित कर दिया था लेकिन सरकार की ताजा योजना को सामाजिक कार्यकर्ता बहुत उपयोगी नहीं मान रहे।

राज्य में आदिवासियों के बीच जल-जंगल और जमीन के मुद्दे पर लडाई लडने वाले गौतम बंदोपाध्याय का कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण से बडा मुद्दा बेहतर जनसंख्या है।

उनका कहना है कि राज्य की पांच आदिम जनजातियों में हाल यह है कि उनकी छह-सात संतान पैदा होती हैं, जिनमें बमुश्किल दो-तीन जिंदा रह पाती हैं।

वे कहते हैं, ''शहरों के लिए सरकार की यह योजना ठीक हो सकती है पर इस आदिवासी बहुल राज्य में सरकार को आदिवासी केंद्रित स्वास्थ्य जनसंख्या की योजना बनानी चाहिए, जिसे लागू करने के लिए संस्थागत ढांचा तैयार किया जाना चाहिए। आदिवासियों में मृत्यु दर घटे, उनमें कुपोषण कम हो, उनका जीवन स्तर सुधरे, इसे पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए।''

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