![ग्रीन बोनसः उत्तराखंड को मिलेगा हर साल 1 हजार करोड़ green bonus for mountain states](http://img.amarujala.com/2013/11/22/rupees-528f2c61b5dfd_exl.jpg)
खास-खास
इन राज्यों को होगा फायदा- जम्मू एवं कश्मीर
- हिमाचल
- उत्तराखंड
- अरुणाचल
- आसाम
- मिजोरम
- मनीपुर
- मेघालय
- त्रिपुरा
- सिक्किम
- नागालैंड
ये हो सकेंगे काम
- सड़क, रेलवे नेटवर्क, हवाई अड्डे, हैलीपैड
- पेयजल, लघु सिंचाई
- बागवानी, पशुपालन
- स्कूल, क्षमता विकास, व्यवसायिक महाविद्यालय
- स्वास्थ्य केंद्र, डिस्पेंसरी, अस्पताल
उत्तराखंड समेत 11 हिमालयी राज्यों को अब ग्रीन बोनस मिलेगा। योजना आयोग सदस्य बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में गठित विशेष समिति ने इन राज्यों को दिए जाने वाले कुल योजना बजट का दो प्रतिशत हर साल देने की सिफारिश की है।
एक हजार करोड़ मिलने की उम्मीद
इस हिसाब से राज्यों को करीब दस हजार करोड़ रुपये हर साल अगले चार साल तक मिलेगा। उत्तराखंड को करीब एक हजार करोड़ रुपये हर साल मिलने की उम्मीद है।
समिति ने यह भी स्पष्ट किया है यह बोनस समय से जारी किया जाएगा और इसका उपयोग अवस्थापना विकास के कार्य के लिए होगा।
योजना आयोग की इसी समिति के सदस्य और उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव डा. आरएस टोलिया के मुताबिक योजना आयोग इन संस्तुतियों को स्वीकार कर चुका है।
समिति का स्पष्ट मानना था कि देश के पर्यावरण के संरक्षण में इन राज्यों का खास योगदान है। पर इस पर्यावरण संरक्षण की कीमत विकास के अवरुद्ध होने के रूप में इन राज्यों को चुकानी पड़ रही है।
और भी कई परेशानियां
पर्वतीय राज्य होने के कारण उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों के सामने और भी कई परेशानियां हैं। मसलन विकास कार्य की कीमत पर्वतीय क्षेत्रों में मैदान की तुलना में डेढ़ गुनी अधिक हो जाती है।
मौसम ऐसा है कि निर्माण कार्य के लिए बहुत अधिक समय नहीं मिल पाता। इस स्थिति को देखते हुए समिति की संस्तुति यह भी है कि इन राज्यों को निर्धारित समय में धनराशि जारी की जाए।
खास बात यह भी है कि समिति ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ग्रीन बोनस की यह राशि राज्य विकास कार्य में अपने हिसाब से खर्च कर सकेंगे।
यह राशि भी कुल बजटीय सपोर्ट का दो प्रतिशत है और 12वीं पंचवर्षीय योजना के दूसरे साल से अगले चार साल तक के लिए मिलेगी। इस हिसाब से पर्वतीय राज्यों का करीब 40 हजार करोड़ रुपये का ग्रीन बोनस अगले चार साल में मिल पाएगा।
आखिरकार मिल गया ग्रीन बोनस
उत्तराखंड पिछले कई साल से ग्रीन बोनस की मांग करता रहा है। इस मद में केंद्रीय वित्तीय आयोगों ने उत्तराखंड को धनराशि जारी की भी है।
यह पहली बार होगा कि हर साल करीब एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि उत्तराखंड को मिल पाएगी। अब तक करीब 65 करोड़ रुपये उत्तराखंड को इस मदी में मिले भी हैं। 13वें वित्त आयोग के सामने भी राज्य ने ग्रीन बोनस की मांग की थी और हर साल दो सौ करोड़ रुपये इस मद में मांगा था।
ये है समिति
केंद्रीय योजना आयोग ने प्रधानमंत्री से स्वीकृति मिलने के बाद 25 नवंबर 2011 को इस विशेष समिति का गठन किया था। योजना आयोग के सदस्य बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने नवंबर 2013 में अपनी संस्तुतियां योजना आयोग को सौंपी।
ग्रीन बोनस के लिए बदल गया आधार
ग्रीन बोनस निर्धारित करने के लिए समिति ने एक अलग ही तर्कदिया। पहले पर्वावरण सेवाओं जैसे पानी, हवा, जैव विविधता आदि के बदले धनराशि दिए जाने की बात थी। पर मुसीबत यह थी कि इन इकोलॉजिकल सेवाओं को पैसों में आंकना संभव नहीं हो पा रहा था।
ऐसे में ग्रीन बोनस निर्धारित करने के लिए समिति ने पहले डेवलपमेंट डिप्रिवाइजेशन इनडेक्स या डीडीई का विकास किया। इससे यह पता चला कि वन क्षेत्रों� को बचाए रखने की कितनी कीमत प्रदेश को अदा करनी पड़ रही है। इसके अलावा वन क्षेत्रों से मिलने वाले राजस्व और अन्य पहलुओं का भी अध्ययन किया गया।
"हिमालयी राज्यों के सामने एक सबसे बड़ी परेशानी यह भी है कि उनके पास वन क्षेत्र अधिक होने के कारण वित्तीय संसाधनों का अभाव है। विकास कार्य के लिए वित्तीय संसाधन भी चाहिएं।
दूसरी ओर पर्यावरण एक बाधा बनकर सामने खड़ा हो जाता है। ऐसे में ग्रीन बोनस के रुप में इन राज्यों की इस समस्या का यह समाधान हो सकेगा। योजना आयोग ने अपना काम कर दिया है।
अब राज्य सरकारों के पाले में गेंद है। परियोजना का चयन राज्य सरकार और योजना आयोग के बीच में समन्वय के जरिए होगा।"
-डा. आरएस टोलिया, पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड और योजना आयोग की विशेष समिति के सदस्य
एक हजार करोड़ मिलने की उम्मीद
इस हिसाब से राज्यों को करीब दस हजार करोड़ रुपये हर साल अगले चार साल तक मिलेगा। उत्तराखंड को करीब एक हजार करोड़ रुपये हर साल मिलने की उम्मीद है।
समिति ने यह भी स्पष्ट किया है यह बोनस समय से जारी किया जाएगा और इसका उपयोग अवस्थापना विकास के कार्य के लिए होगा।
योजना आयोग की इसी समिति के सदस्य और उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव डा. आरएस टोलिया के मुताबिक योजना आयोग इन संस्तुतियों को स्वीकार कर चुका है।
समिति का स्पष्ट मानना था कि देश के पर्यावरण के संरक्षण में इन राज्यों का खास योगदान है। पर इस पर्यावरण संरक्षण की कीमत विकास के अवरुद्ध होने के रूप में इन राज्यों को चुकानी पड़ रही है।
और भी कई परेशानियां
पर्वतीय राज्य होने के कारण उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों के सामने और भी कई परेशानियां हैं। मसलन विकास कार्य की कीमत पर्वतीय क्षेत्रों में मैदान की तुलना में डेढ़ गुनी अधिक हो जाती है।
मौसम ऐसा है कि निर्माण कार्य के लिए बहुत अधिक समय नहीं मिल पाता। इस स्थिति को देखते हुए समिति की संस्तुति यह भी है कि इन राज्यों को निर्धारित समय में धनराशि जारी की जाए।
खास बात यह भी है कि समिति ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ग्रीन बोनस की यह राशि राज्य विकास कार्य में अपने हिसाब से खर्च कर सकेंगे।
यह राशि भी कुल बजटीय सपोर्ट का दो प्रतिशत है और 12वीं पंचवर्षीय योजना के दूसरे साल से अगले चार साल तक के लिए मिलेगी। इस हिसाब से पर्वतीय राज्यों का करीब 40 हजार करोड़ रुपये का ग्रीन बोनस अगले चार साल में मिल पाएगा।
आखिरकार मिल गया ग्रीन बोनस
उत्तराखंड पिछले कई साल से ग्रीन बोनस की मांग करता रहा है। इस मद में केंद्रीय वित्तीय आयोगों ने उत्तराखंड को धनराशि जारी की भी है।
यह पहली बार होगा कि हर साल करीब एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि उत्तराखंड को मिल पाएगी। अब तक करीब 65 करोड़ रुपये उत्तराखंड को इस मदी में मिले भी हैं। 13वें वित्त आयोग के सामने भी राज्य ने ग्रीन बोनस की मांग की थी और हर साल दो सौ करोड़ रुपये इस मद में मांगा था।
ये है समिति
केंद्रीय योजना आयोग ने प्रधानमंत्री से स्वीकृति मिलने के बाद 25 नवंबर 2011 को इस विशेष समिति का गठन किया था। योजना आयोग के सदस्य बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने नवंबर 2013 में अपनी संस्तुतियां योजना आयोग को सौंपी।
ग्रीन बोनस के लिए बदल गया आधार
ग्रीन बोनस निर्धारित करने के लिए समिति ने एक अलग ही तर्कदिया। पहले पर्वावरण सेवाओं जैसे पानी, हवा, जैव विविधता आदि के बदले धनराशि दिए जाने की बात थी। पर मुसीबत यह थी कि इन इकोलॉजिकल सेवाओं को पैसों में आंकना संभव नहीं हो पा रहा था।
ऐसे में ग्रीन बोनस निर्धारित करने के लिए समिति ने पहले डेवलपमेंट डिप्रिवाइजेशन इनडेक्स या डीडीई का विकास किया। इससे यह पता चला कि वन क्षेत्रों� को बचाए रखने की कितनी कीमत प्रदेश को अदा करनी पड़ रही है। इसके अलावा वन क्षेत्रों से मिलने वाले राजस्व और अन्य पहलुओं का भी अध्ययन किया गया।
"हिमालयी राज्यों के सामने एक सबसे बड़ी परेशानी यह भी है कि उनके पास वन क्षेत्र अधिक होने के कारण वित्तीय संसाधनों का अभाव है। विकास कार्य के लिए वित्तीय संसाधन भी चाहिएं।
दूसरी ओर पर्यावरण एक बाधा बनकर सामने खड़ा हो जाता है। ऐसे में ग्रीन बोनस के रुप में इन राज्यों की इस समस्या का यह समाधान हो सकेगा। योजना आयोग ने अपना काम कर दिया है।
अब राज्य सरकारों के पाले में गेंद है। परियोजना का चयन राज्य सरकार और योजना आयोग के बीच में समन्वय के जरिए होगा।"
-डा. आरएस टोलिया, पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड और योजना आयोग की विशेष समिति के सदस्य
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