Wednesday, December 18, 2013

काम करने से किया इनकार, काटे दो लोगों के हाथ

hands of two labourers hand chopped in orissa
उड़ीसा के कालाहांडी जिले की एक दिल दहला देने वाली घटना में मज़दूरों की दलाली करने वाले ठेकेदारों ने पड़ोस के राज्य छत्तीसगढ़ में जाकर काम करने से इंकार करने पर दो मज़दूरों के हाथ काट दिए।

स्वयंसेवी संस्था सीजीनेट स्वरा से मिली जानकारी के मुताबिक जयपटना इलाके के नुआपाड़ा गाँव के रहने वाले दोनों मज़दूर नीलाम्बर धांगडा माझी और पिआलू धांगड़ा माझी, इस समय भवानीपटना के ज़िला मुख्यालय अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं।

इस घटना की पुष्टि करते हुए कालाहांडी के पुलिस अधीक्षक सार्थक सारंगी ने बीबीसी को बताया कि मज़दूरों के दलाल फ़रार हैं और उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस ने अभियान शुरू किया है।

गंभीर रूप से घायल इन दोनों मज़दूरों ने पुलिस को जो बयान दिए हैं उसके मुताबिक नुआपाड़ा ज़िले के दो दलाल परमे राउत और केला राउत ने उन्हें और उन्हीं के इलाके के दस दूसरे मज़दूरों को फसल की कटाई के बाद आंध्र प्रदेश में जाकर काम करने के लिए 10 से 15 हजार रुपए बतौर पेशगी दिए थे।

दलालों की मनमानी


उन्होंने बताया कि कटाई पूरी होने से पहले ही रविवार को दोनों दलाल अचानक उनके गांवो में आ धमके और उन्हें ज़बरदस्ती एक बोलेरो जीप में डालकर ले गए।

रास्ते में जब मजदूरों को पता चला कि उन्हें आंध्र प्रदेश के बजाए छत्तीसगढ़ ले जाया जा रहा है, तो उन्होंने इसका विरोध किया, लेकिन दलालों ने उनकी एक न सुनी।

रायपुर जाते समय सीनापाली के पास एक जगह शौच के लिए गाड़ी रुकी तो उसमें सवार 12 मज़दूरों में से 10 मजदूर वहां से भाग खड़े हुए, लेकिन नीलाम्बर और पिआलू भाग नहीं पाए।

बाकी मज़दूरों के भाग जाने से नाराज़ दलाल नीलाम्बर और पिआलू से दो लाख रुपयों की मांग करने लगे जो उन्होंने बतौर पेशगी सभी मजदूरों को दिए थे। ऐसे में उन्होंने इतनी बड़ी रकम देने में अपनी असमर्थता ज़ाहिर की।

जारी है बर्बरता

इसके बाद दलालों ने उनके दाहिने हाथ की हथेली यह कहते हुए काट दी कि "अगर तुम हमारे लिए काम नहीं करोगे, तो हम तुम्हें किसी के लिए काम करने के लायक नहीं छोड़ेंगे।"

इस बर्बर काण्ड ने एक बार फिर प्रवासी मज़दूरों के साथ हो रही ज़्यादतियों को उजागर किया है। हर वर्ष कालाहांडी, नवापाड़ा और बोलांगीर ज़िलों से लाखों लोग पडोसी राज्य आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ईंट भट्ठियों में काम करने जाते है। उन राज्यों में मज़दूरों के उत्पीड़न के किस्से आए दिन अख़बारों कि सुर्खियों में आते हैं।

अंतरराज्य मज़दूरों के हित के लिए पिछले एक दशक से काम कर रहे उमी डेनियल ने बीबीसी से कहा कि मज़दूरों के उत्पीड़न के सैंकड़ों किस्से हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब इस तरह कि बर्बरता देखी है।

ऐड दे एक्शन के लिए काम करने वाले उमी डेनियल इस तरह के पलायन को 'ह्यूमन ट्रैफिकिंग' बताते है। 'हर साल सर्दियों में कालाहांडी, बलांगीर और नुआपाड़ा ज़िलों से 1 से 1.5 लाख लोग के साथ आंध्र प्रदेश और दुसरे दक्षिणी प्रदेशों के ईंट के भट्ठों में काम करने के लिए जाते हैं। सन 1989 में ओडिशा द्वारा पारित 'इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन एक्ट' के बावज़ूद इन राज्यों में उनका उत्पीड़न होने आम बात है।'

बोलांगीर ज़िले के कांटाबांजी - जहाँ से सबसे अधिक लोग बाहर के प्रदेशों के लिए रवाना होते हैं - में पिछले दो दशक से अंतरराज्य मज़दूरों के हितों की रक्षा के लिए काम कर रहे वकील विष्णु प्रसाद शर्मा के अनुसार इन ज़िलों से पलायन करने वाले मज़दूरों की संख्या ढाई से तीन लाख है।

"आश्चर्य की बात है कि लगभग 100 करोड़ के इस सालाना व्यापार में पैसे की कोई लिखा पढ़ी नहीं होती। सब कुछ बातों में तय होता है। इस लिए कई बार मज़दूरों को न्याय नहीं मिल पाता।"

सरकारी नियमों के अनुसार न केवल मज़दूरों का, बल्कि दलालों का भी पंजीकरण लाजमी है। लेकिन शर्मा के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक कारोबार करने वालों का पंजीकरण नहीं है।

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