Saturday, January 4, 2014

'न कोई मकान, न पैसे, कैसे लौटें गांव!'

Critical condition of muzaffarnagar riots refugees
शामली राहत शिविर में अपना तंबू उखाड़कर सामान के पास मायूस हाल में बैठी भौराखुर्द की 75 साल की सईदन की आंखों में आंसू थे। पूछने पर बोली शिविर वाले कह रहे हैं जगह खाली करो।

गांव में जाने की हिम्मत नहीं होती, किराए पर कोई मकान देने को तैयार नहीं है, महंगा किराया बताते हैं, ऊपर से जानकार की गारंटी और जमानत भी मांगते हैं वह किसकी गारंटी दिलाए।

दो दिन से बच्चे मकान की तलाश में घूम रहे हैं। उसके 80 साल के शौहर से ढंग से चला भी नहीं जाता, समझ में नहीं आता वह कहां जाए।

शिविर के जिम्मेदारों ने भी साथ नहीं दिया। शरणार्थी शिविर से अपने तंबू उतार जाने की तैयारी में जुटे शरणार्थी भरे मन से कुछ इसी तरह अपनी पीड़ा बयां कर रहे थे।

भौराखुर्द के इलियास और माजिद बोले सुबह को शिविर के जिम्मेदार आए थे, बोले अफसर नहीं मान रहे। शिविर तो खाली करना ही पडे़गा।

पुलिस आई तो जोर जबरदस्ती होगी, इसलिए वह तो इज्जत से जाना ही बेहतर समझ रहे हैं, उन्होंने सामान तो समेट लिया अब रहने का ठिकाना ढूंढ रहे हैं।

माजिद ने कहा कि दो जनवरी को कलक्ट्रेट पर हुए धरना प्रदर्शन के दौरान तो शिविर संचालकों ने उन्हें पूरी मदद का भरोसा दिया था, लेकिन अब वह भी प्रशासन के दबाव में आ गए।

यह भी नहीं सोचा कि इतनी जल्दी वह लोग रहने का ठिकाना कैसे ढूंढेंगे। चारपाई पर पड़े 95 साल के इद्दू ने बताया कि वह चल फिर नहीं सकता, बीमार है, शिविर में जैसे तैसे दिन काट रहे हैं अब यहां से भी जाने को कह दिया।

उसके बेटे रहने का आशियाना ढूंढने में लगे थे। इसी तरह शिविर में ठहरे कई शरणार्थी मायूस नजर आए।

उधर, शिविर संचालक इमरान का कहना था कि शरणार्थियों को समझा बुझाकर शिविर से भेजा गया है किसी के साथ प्रशासन या शिविर संचालकों की ओर से जोर जबरदस्ती नहीं की गई।

No comments:

Post a Comment