Monday, January 6, 2014

बुलंद हौसले ने बनाया अंतर्राष्ट्रीय फुटबालर

International footballer poonam
मैराडोना, पेले का नाम सुनते ही मुन्ना चौहान जोश से भर जाते थे, पैरों में सिहरन होने लगती थी। आर्थिक दिक्कतों ने उनको मोहन बगान और मोहम्मडन स्पोर्टिंग तक भी नहीं पहुंचने दिया।

लेकिन मुन्ना ने अपने की तामीर बेटियों के जरिए कर डाली। उनकी बेटी पूनम ने तो दो बार जूनियर और एक बार भारत की सीनियर फुटबाल टीम का प्रतिनिधित्व तक किया। वह इन दिनों पटियाला में एनआईएस का डिप्लोमा कोर्स कर रही हैं।

मौजूदा सत्र में फुटबाल में एनआईएस करने वाली पूनम देश की इकलौती महिला हैं। मुन्ना की छोटी पूजा चौहान भी अंतरराष्ट्रीय फुटबालर हैं। वह दो बार भारत की जूनियर टीम का हिस्सा रह चुकी हैं।

वाराणसी के शिवपुर इलाके में रहने वाले मुन्ना स्टेशनरी की छोटी सी दुकान चलाते हैं, जिससे होने वाली आय से वह परिवार का भरण-पोषण करते हैं।

उनके पास धन भले ही न हो, लेकिन बुलंद हौसले की बदौलत उनकी दो बेटियां अंतर्राष्ट्रीय फुटबालर बन कर नाम कमा रही हैं।

अपनी सफलता की बाबत पूनम कहती हैं कि परिवार का सहयोग न मिलता तो इस मुकाम पर कत्तई न पहुंच पाती। हमने गरीबी देखी है लेकिन पिता ने तो गरीबी झेली भी है। उनके पास पैसों की नहीं हौसलों की ताकत थी और हौसले की इसी पूंजी ने हमें बुलंदी पर पहुंचाया।

हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह देश के लिए खेले और जीते। मेरा यह सपना सबकी दुआओं से पूरा हो गया। 2010 में जब बांग्लादेश में एएफसी कप जूनियर फुटबाल चैंपियनशिप में भारतीय टीम चैंपियन हुई और हम सबके गले में स्वर्ण पदक आया तो वह मेरे जीवन का सबसे सुखद क्षण था।

क्योंकि राष्ट्रगान की धुन बज रही थी और हम लोगों को स्वर्ण पदक पहनाया जा रहा है। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन में इतना सब इतनी आसानी से हासिल हो जाएगा। मुझे फख्र है कि मैं इस परिवार में पैदा हुई। कहीं और जन्म लेती तो शायद यहां तक नहीं पहुंच पाती।

यूपी की पहली महिला अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी पूनम तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनकी सबसे छोटी बहन पूजा चौहान भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने खेल का जौहर दिखा चुकी हैं। पूजा यूपी कालेज से ग्रेजूएशन कर रही हैं।

पिता मुन्ना लाल चौहान कहते हैं, मुझे अपनी बेटियों पर नाज है। तीनों बेटियां पूनम, संध्या और पूजा ने अपनी मेहनत की बदौलत मुकाम हासिल किया है। आज बेटियों की वजह से ही मेरी पहचान है। बहनों की देखा-देखी बेटा भी खेल में आगे बढ़ रहा है।

मेरी बेटियां मेरे लिए बेटे के समान हैं। बेटियों की वजह से परिवार को पहचान मिली है। जो लोग शुरू में आलोचना करते थे अब वहीं लोग तारीफ के पुल बांध रहे हैं।

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