Sunday, January 5, 2014

बांग्लादेश चुनाव: मतदान के दौरान हिंसा, चार की मौत

Voting Begins In Bangladesh

खास-खास

कब किसका शासन

1972-1975 शेख़ मुजीबुर रहमान (अवामी लीग)
1975-1981 ज़ियाउर रहमान (बीएनपी)
1982-1990 हुसैन मोहम्मद इरशाद (जातीय पार्टी)
1991-1996 ख़ालिदा ज़िया (बीएनपी)
1996-2001 शेख़ हसीना (अवामी लीग)
2001-2006 ख़ालिदा ज़िया (बीएनपी)
2006-2008 कार्यवाहक सरकार
2009 से वर्तमान तक शेख़ हसीना (अवामी लीग)
बांग्लादेश में आज दसवें संसदीय चुनावों के लिए मतदान जारी है। देश के दूरदराज़ इलाक़ों से हिंसा की ख़बरें मिली हैं। अधिकारियों के मुताबिक़ उत्तरी बांग्लादेश में सुबह से हुई हिंसक वारदातों में अब तक चार लोगों की मौत हो चुकी है और कई गंभीर रूप से घायल हो गए हैं।

विपक्षी दलों ने आम चुनावों का बहिष्कार किया है, जिसकी वजह से इनकी वैधता पर सवाल खड़े हो गए हैं। इस बीच राजधानी ढाका में मतदान प्रक्रिया कड़ी सुरक्षा के बीच जारी है। हालांकि मतदान केंद्रों में वोटरों की भीड़ अपेक्षा से कहीं कम देखी जा रही है।

हिंसा के डर से कई लोग घरों से निकलने में हिचकिचा भी रहे हैं और ढाका में सिर्फ़ आठ संसदीय सीटों पर चुनाव हो रहा है। कई सीटें ऐसी हैं जिनमें सत्ताधारी अवामी लीग का उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध चुन लिया गया है। ढाका में यातायात पूरी तरह ठप है और सड़कों पर रिक्शे और ऑटो के अलावा वाहन नदारद हैं। हिंसा से निपटने के लिए पूरे देश में क़रीब साढ़े तीन लाख पुलिसकर्मियों को लगाया गया है।

बीबीसी संवाददाता महफ़ूज़ सादिक़ ने बताया है कि विपक्ष के बहिष्कार की वजह से कई सीटों पर सत्तारूढ़ गठबंधन के उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध चुन लिए गए हैं। मतदान को लेकर पूरे देश में गहमागहमी है। स्थानीय लोगों ने मतदान के दौरान होने वाली हिंसा पर चिंता जताई है।

ढाका में मौजूद बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव ने बताया कि मतदान के दौरान सुरक्षा को देखते हुए यह काफ़ी बड़ी तादाद मानी जा सकती है और इससे वहां चुनाव के दौरान हालात का पता चलता है। बीबीसी संवाददाता के मुताबिक़ ढाका में हर आधा किलोमीटर के बाद नाके लगाए गए हैं और पहचान पत्र के साथ ही सड़कों पर लोगों को निकलने की इजाज़त दी गई है।

हालांकि बहिष्कार का आह्वान करने वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेता शमशेर चौधरी का कहना है कि उनकी पार्टी हिंसा नहीं चाहती और सिर्फ़ शांतिपूर्ण ढंग से चुनावों के बहिष्कार का ऐलान किया गया है। उनका कहना था कि जनता ने ही इन चुनावों का बायकॉट कर दिया है।

विपक्ष की ग़ैरमौजूदगी
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगी दलों का कहना है कि अवामी लीग सरकार को इस्तीफ़ा देकर कार्यवाहक सरकार की निगरानी में चुनाव कराने चाहिए थे मगर सत्तारूढ़ क्लिक करें अवामी लीग, विपक्ष की मांग को यह कहकर ख़ारिज़ कर चुकी है कि चुनाव एक संवैधानिक ज़रूरत है और पांच जनवरी को ही कराए जाएंगे।

विपक्ष की ग़ैर मौजूदगी के चलते चुनावों की वैधता पर सवाल खड़े हुए हैं और माना जा रहा है कि अवामी लीग पार्टी भारी बहुमत से चुनाव जीत सकती है और उन्हें कुल 300 सीटों में कम से कम 154 सीटों पर बिना किसी चुनौती के जीत मिल सकती है।

अमरीका और यूरोपीय यूनियन ने चुनाव-प्रक्रिया की निगरानी के लिए अपने पर्यवेक्षक बांग्लादेश नहीं भेजे हैं।

कार्यवाहक सरकार का पेंच
बांग्लादेश में आम चुनाव अक्सर कार्यवाहक सरकारों की निगरानी में होते आए हैं। हालांकि यह मुद्दा हमेशा विवादों में घिरा रहा है।

1996 में मौजूदा सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग ने चुनावों का बहिष्कार किया था जबकि 2007 में मौजूदा विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी नेता ख़ालिदा जिया ने भी इस व्यवस्था को बदलने की कोशिश की थी।

इस बार फिर यह मुद्दा गर्माया। पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी प्रमुख ख़ालिदा ज़िया का कहना है कि इस तरह की सरकार के तहत होने वाले चुनाव निष्पक्ष नहीं होंगे।

शेख़ हसीना बनाम ख़ालिदा ज़िया
हाल के वर्षों में बांग्लादेश में राजनीति के दो ही ध्रुव रहे हैं- प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और बीएनपी नेता ख़ालिदा ज़िया। दोनों के दरम्यान क्लिक करें राजनीतिक शत्रुता रही है।

गुजरे वर्षों में देश में एक तीसरी राजनीतिक पार्टी भी उभरी है जिसका नाम जातीय पार्टी है जिसकी कमान पूर्व राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद इरशाद के हाथों में है। जातीय पार्टी भी इन चुनावों का बहिष्कार कर रही है।

मुख्य मुद्दे
बांग्लादेश में राजनीतिक स्थायित्व एक प्रमुख मुद्दा रहा है जहां चुनावी परिदृश्य में हड़ताल और हिंसा आम बात है।

बेरोज़गारी, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, खाने-पीने की चीजों के बढ़ते दाम, औद्योगिक दुर्घटनाएं और मानव अधिकारों का हनन अन्य प्रमुख मुद्दे हैं।

बीते साल 24 अप्रैल ढ़ाका के निकट आठ मंज़िला कपड़ा फैक्टरी में आग लगने की वजह से एक हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे। बांग्लादेश कपड़ा बनाने वाले दुनिया के बड़े देशों में से एक रहा है लेकिन औद्योगिक सुरक्षा मापदंडों में नाक़ाम रहा है।

सुरक्षा और कपड़ा फैक्टरी में काम करने वाले मज़दूरों का मेहनताना भी इस चुनाव के प्रमुख मुद्दों में शामिल है।

देश की प्रमुख इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया गया है। चुनाव में इस प्रतिबंध का असर भी देखने को मिल सकता है।

पार्टी के वरिष्ठ नेता क्लिक करें अब्दुल कादिर मुल्ला को बीते साल 13 दिसंबर को फांसी दी गई थी। उन्हें वर्ष 1971 में युद्ध-अपराधों का दोषी पाया गया था।

अब्दुल कादिर को फांसी दिए जाने पर देश के लोगों की राय अलग-अलग थी जिसके नतीजे में पूरे देश में क्लिक करें हिंसक झड़पें हुई थीं।

बांग्लादेश में साल 2008 के संसदीय चुनावों में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8।1 करोड़ से अधिक थी और तब 70 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था।

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