अरविंद केजरीवाल की ताजपोशी ने भाजपा की भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
लोकसभा के लिए सियासी जंग की तैयारी में जुटी भाजपा में इस बात पर मंथन शुरू हो गया है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बन जाने के बाद लोकसभा के 'मिशन 272 प्लस' के लिए पार्टी को रणनीति बदलनी होगी।
पार्टी इस बात से आशंकित है कि कहीं 'केजरीवाल' की आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में दिल्ली की ओर बढ़ रहे नरेंद्र मोदी के रथ की राह में रोड़ा न अटका दे।
लगभग एक साल पहले बनी पार्टी के पहली बार में ही सरकार बना लेने से केजरीवाल देश-दुनिया में तो चर्चा का विषय बने ही हैं, अब भाजपा भी उन पर मंथन करने को मजबूर हो गई है।
कांग्रेस को शिकस्त देने व केंद्र में सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त रही भाजपा को अब सबसे बड़ा खतरा केजरीवाल दिखने लगे हैं। पार्टी भी मानती है कि केजरीवाल जब तक पद पर रहेंगे, रोजाना नई-नई बातें सामने रखेंगे, जो जनता को पसंद हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद वे अब मोदी की तुलना में राष्ट्रीय मीडिया में ज्यादा दिखेंगे।
विधानसभा चुनाव से पहले तक केजरीवाल को बहुत हल्के से लेने वाली भाजपा की केंद्रीय चुनाव अभियान समिति की हाल में हुई बैठक में 'आप' को लेकर भी चर्चा हुई।
सूत्रों के अनुसार इस बैठक में इस बात की आशंका जताई गई कि केजरीवाल लोकसभा चुनाव में भले ही करिश्मा न दोहराएं, लेकिन भाजपा को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं, और कांग्रेस यही चाहती है।
खासतौर पर जिस युवा, महिला और मध्यम वर्ग के भरोसे भाजपा दिल्ली तख्त की उम्मीद पाल रही है, अब दिल्ली में ये वर्ग केजरीवाल के साथ खड़े हैं।
'आप' ने वैसे भी लोकसभा चुनाव में लगभग 150 सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है, इससे भाजपा को अपने वोट बैंक में सेंध लगती दिख रही है।
पार्टी को आशंका है कि कांग्रेस विरोधी लहर का जो फायदा भाजपा को मिलना चाहिए वह कहीं 'आप' के खाते में न चला जाए।
खासतौर पर दिल्ली व आसपास के इलाकों से लेकर देशभर में शहरी क्षेत्रों में भाजपा को कम से कम 40-50 सीटों का राजनीतिक गणित गड़बड़ाता दिख रहा है। क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का झंडा अब भाजपा की बजाए 'आप' के हाथ में दिख रहा है।
लोकसभा के लिए सियासी जंग की तैयारी में जुटी भाजपा में इस बात पर मंथन शुरू हो गया है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बन जाने के बाद लोकसभा के 'मिशन 272 प्लस' के लिए पार्टी को रणनीति बदलनी होगी।
पार्टी इस बात से आशंकित है कि कहीं 'केजरीवाल' की आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में दिल्ली की ओर बढ़ रहे नरेंद्र मोदी के रथ की राह में रोड़ा न अटका दे।
लगभग एक साल पहले बनी पार्टी के पहली बार में ही सरकार बना लेने से केजरीवाल देश-दुनिया में तो चर्चा का विषय बने ही हैं, अब भाजपा भी उन पर मंथन करने को मजबूर हो गई है।
कांग्रेस को शिकस्त देने व केंद्र में सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त रही भाजपा को अब सबसे बड़ा खतरा केजरीवाल दिखने लगे हैं। पार्टी भी मानती है कि केजरीवाल जब तक पद पर रहेंगे, रोजाना नई-नई बातें सामने रखेंगे, जो जनता को पसंद हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद वे अब मोदी की तुलना में राष्ट्रीय मीडिया में ज्यादा दिखेंगे।
विधानसभा चुनाव से पहले तक केजरीवाल को बहुत हल्के से लेने वाली भाजपा की केंद्रीय चुनाव अभियान समिति की हाल में हुई बैठक में 'आप' को लेकर भी चर्चा हुई।
सूत्रों के अनुसार इस बैठक में इस बात की आशंका जताई गई कि केजरीवाल लोकसभा चुनाव में भले ही करिश्मा न दोहराएं, लेकिन भाजपा को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं, और कांग्रेस यही चाहती है।
खासतौर पर जिस युवा, महिला और मध्यम वर्ग के भरोसे भाजपा दिल्ली तख्त की उम्मीद पाल रही है, अब दिल्ली में ये वर्ग केजरीवाल के साथ खड़े हैं।
'आप' ने वैसे भी लोकसभा चुनाव में लगभग 150 सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है, इससे भाजपा को अपने वोट बैंक में सेंध लगती दिख रही है।
पार्टी को आशंका है कि कांग्रेस विरोधी लहर का जो फायदा भाजपा को मिलना चाहिए वह कहीं 'आप' के खाते में न चला जाए।
खासतौर पर दिल्ली व आसपास के इलाकों से लेकर देशभर में शहरी क्षेत्रों में भाजपा को कम से कम 40-50 सीटों का राजनीतिक गणित गड़बड़ाता दिख रहा है। क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का झंडा अब भाजपा की बजाए 'आप' के हाथ में दिख रहा है।
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