
भाजपा ने प्रदेश के नए मुख्यमंत्री हरीश रावत को घेरने के लिए नया चुनाव प्रभारी दिया है। मातृत्व प्रदेश के लिए उमा भारती नई नहीं हैं। भाजपा ने उमा भारती को मैदान में उतारकर हिंदुत्व, महिला और उनकी फायर ब्रांड छवि को भुनाने का कार्ड चला है।
इसका कितना फायदा होगा ये नतीजे बताएंगे। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद प्रदेश में भाजपा को ऐसे ही नेता की आवश्यकता थी जो हरीश रावत को चुनाव में टक्कर दे सके।
उत्तराखंड में समय-समय पर आंदोलन चलाए
उमा भारती उत्तराखंड के लिए परिचित नाम है। धारी देवी से उनका सालों से जुड़ाव है। गंगा, बांध और यहां के तीर्थ स्थलों को लेकर उन्होंने समय-समय पर आंदोलन चलाए हैं। ऐसे में चुनाव की कमान उनके हाथों सौंपी गई है।
धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हैं
उत्तरखंड में इस समय आपदा के बाद पुर्नवास और राहत सबसे बड़ा मुद्दा है। भाजपा इसे हर हाल में भुनाना चाहती है। इस मुद्द पर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने के उसके पास पर्याप्त आधार हैं।
चार धाम यात्रा के साथ यहां के पौराणिक मंदिरों को लेकर लोगों की धार्मिक आस्थाएं तो जुड़ी ही हैं कहीं न कहीं लाखों लोगों की अजीविका से भी जुड़ा है। गंगा यात्रा निकालकर उमाभारती ने प्रदेश के तमाम इलाकों का जमीनी दौरा किया था।
उमा भारती को साबित करने का मौका
भाजपा लंबे समय से कहीं न कहीं उमा भारती को उत्तराखंड से जोड़ना चाहती थी। चूंकि उत्तर प्रदेश की कमान पूरी तरह से मोदी के करीबी अमित शाह के हाथ हैं और उमा भारती को मध्य प्रदेश भेजा नहीं जा सकता था।
लिहाजा उमाभारती की कर्मस्थली में ही उन्हें अपने को साबित करने का मौका पार्टी ने दिया है। पार्टी में उमाभारती को हरिद्वार से लोकसभा चुनाव लड़ाने की भी तैयारी थी लेकिन पार्टी ने उन्हें एक लोकसभा क्षेत्र में न बांधकर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है।
इसका कितना फायदा होगा ये नतीजे बताएंगे। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद प्रदेश में भाजपा को ऐसे ही नेता की आवश्यकता थी जो हरीश रावत को चुनाव में टक्कर दे सके।
उत्तराखंड में समय-समय पर आंदोलन चलाए
उमा भारती उत्तराखंड के लिए परिचित नाम है। धारी देवी से उनका सालों से जुड़ाव है। गंगा, बांध और यहां के तीर्थ स्थलों को लेकर उन्होंने समय-समय पर आंदोलन चलाए हैं। ऐसे में चुनाव की कमान उनके हाथों सौंपी गई है।
धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हैं
उत्तरखंड में इस समय आपदा के बाद पुर्नवास और राहत सबसे बड़ा मुद्दा है। भाजपा इसे हर हाल में भुनाना चाहती है। इस मुद्द पर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने के उसके पास पर्याप्त आधार हैं।
चार धाम यात्रा के साथ यहां के पौराणिक मंदिरों को लेकर लोगों की धार्मिक आस्थाएं तो जुड़ी ही हैं कहीं न कहीं लाखों लोगों की अजीविका से भी जुड़ा है। गंगा यात्रा निकालकर उमाभारती ने प्रदेश के तमाम इलाकों का जमीनी दौरा किया था।
उमा भारती को साबित करने का मौका
भाजपा लंबे समय से कहीं न कहीं उमा भारती को उत्तराखंड से जोड़ना चाहती थी। चूंकि उत्तर प्रदेश की कमान पूरी तरह से मोदी के करीबी अमित शाह के हाथ हैं और उमा भारती को मध्य प्रदेश भेजा नहीं जा सकता था।
लिहाजा उमाभारती की कर्मस्थली में ही उन्हें अपने को साबित करने का मौका पार्टी ने दिया है। पार्टी में उमाभारती को हरिद्वार से लोकसभा चुनाव लड़ाने की भी तैयारी थी लेकिन पार्टी ने उन्हें एक लोकसभा क्षेत्र में न बांधकर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है।
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