Sunday, January 26, 2014

आडवाणी-जोशी को राज्यसभा का ‌टिकट?

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अटल-आडवाणी की छाया से पूरी तरह मुक्त हो चुकी भाजपा, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक और नई करवट लेनी की तैयारी में हैं।

पार्टी नेतृत्व आरएसएस की पुरानी इच्छा के अनुरूप 75 की अवस्था पार कर चुके वरिष्ठ नेताओं को चुनावी राजनीति से दूर कर नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने के फार्मूले पर तत्काल काम शुरू करना चाह रहा है।

इस कड़ी में पार्टी अपने वरिष्ठतम नेताओं लाल कृष्ण आडवाणी और डॉ मुरली मनोहर जोशी को राज्यसभा भेजने की तैयारी कर रही है।

अगर आडवाणी ने विरोध नहीं जताया तो उन्हें गुजरात से और डॉ जोशी को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इसी रणनीति के तहत पार्टी ने महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और गुजरात की पांच सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा रोक रखी है।

दरअसल बीते शुक्रवार को राज्यसभा के प्रत्याशी घोषित करने के लिए हुई केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में इस संबंध में गंभीर बातचीत हुई। अंतिम निर्णय न होने के कारण पांच सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने का फैसला टाल दिया गया।

पार्टी नेतृत्व ने आडवाणी और जोशी से इस सुझाव पर गंभीरता से विचार करने का आग्रह किया है। सूत्रों के मुताबिक बृहस्पतिवार को वरिष्ठ नितिन गडकरी और भाजपा के संगठन महासचिव रामलाल ने संघ प्रमुख मोहन भागवत से नागपुर में मुलाकात कर इस रणनीति पर चर्चा की।

शुक्रवार को चुनाव समिति की बैठक के बाद राजनाथ सिंह के निवास पर एक और विशेष बैठक हुई जिसमें रामलाल, गडकरी, अरुण जेटली और अनंत कुमार शामिल हुए।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक आडवाणी और जोशी दोनों अभी तक इसके लिए राजी नहीं हुए हैं। चूंकि राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 27 जनवरी है, इसलिए अगले एक-दो दिनों में तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाएगी।

गौरतलब है कि संघ 2004 के चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही पार्टी में नई पीढ़ी को विकसित करने की वकालत करता रहा है। पूर्व संघ प्रमुख सुदर्शन ने तो 2004 में ही वाजपेयी, आडवाणी सहित तमाम वयोवृद्ध नेताओं को संन्यास तक लेने की सलाह दे डाली थी।

बाद में साल 2009 के चुनाव में मिली करारी हार के बाद वर्तमान संघ प्रमुख ने भी पार्टी युवा नेतृत्व को विकसित करने की सलाह दी थी। उन्होंने भी 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके नेताओं को पार्टी में युवाओं के लिए रास्ता छोड़ने की सलाह दी थी।

मगर अब लोकसभा चुनाव के ठीक पहले संघ की इच्छा पर अमल आडवाणी और उनके समर्थकों को रास नहीं आने के कई कारण हैं। दरअसल आडवाणी समर्थक अब भी 2014 के चुनाव के बाद आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं।

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