![वीरता पुरस्कार पाने वाला 'वीर' आज भी बदहाल national bravery award winner still unemployed](http://img2.amarujala.com/2014/01/25/bravery-award-winner-52e3d398e691e_exl.jpg)
तीन जनवरी, 2001 को दिन ढलने को था, तभी महाकाली में नाव बेकाबू हो पलट गई। नाव में सवार 18 लोगों में से 11 डूबने लगे। तभी वहां मौजूद एक बहादुर किशोर ने अपनी जान की परवाह किए बगैर नदी में छलांग लगा दी। और एक-एक कर छह लोगों को बचा लिया।
शेष पांच लोगों को एक नेपाली व्यक्ति ने नदी से निकाला। बहादुरी की मिसाल कायम करने वाला यह 'वीर' युवक वर्तमान में बेरोजगार है। सरकार न तब से इस युवक की कोई सुध नहीं ली है।
उत्तराखंड में नेपाल की सीमा से लगे मां पूर्णागिरि क्षेत्र के ऊचौलीगोठ गांव के कृष्णानंद भट्ट के बेटे घनश्याम भट्ट ने तीन, जनवरी 2001 में बेमिसाल बहादुरी दिखाई। इस दिन केंद्रीय जल आयोग की संयुक्त परियोजना के काम में लगे लोग रोज की तरह नाव से लौट रहे थे। तभी महाकाली नदी में नाव डगमगाकर पलट गई और 11 लोग डूबने लगे। नदी किनारे काम कर रहे 14 साल के घनश्याम ने डूबते लोगों को बचाने के लिए नदी में छलांग लगा दी और छह लोगों को सकुशल बचा लिया।
इसके बाद साल 2005 में भी घनश्याम ने मां पूर्णागिरि धाम मेले के दौरान अलीगढ़ के एक तीर्थयात्री को डूबने से बचाया। इस वीरता के लिए घनश्याम को साल 2007 में राष्ट्रपति ने जीवन रक्षा पदक से नवाजा। जिसमें 30 हजार रुपए के अलावा दो मेडल और प्रशस्ति पत्र दिया गया।
उनका कहना है कि नदी किनारे रहने के चलते उन्हें तैराकी में बचपन से ही महारथ है। अपने इस हुनर को घनश्याम अब भी डूबते लोगों को बचाने में लगा रहा है।
शेष पांच लोगों को एक नेपाली व्यक्ति ने नदी से निकाला। बहादुरी की मिसाल कायम करने वाला यह 'वीर' युवक वर्तमान में बेरोजगार है। सरकार न तब से इस युवक की कोई सुध नहीं ली है।
उत्तराखंड में नेपाल की सीमा से लगे मां पूर्णागिरि क्षेत्र के ऊचौलीगोठ गांव के कृष्णानंद भट्ट के बेटे घनश्याम भट्ट ने तीन, जनवरी 2001 में बेमिसाल बहादुरी दिखाई। इस दिन केंद्रीय जल आयोग की संयुक्त परियोजना के काम में लगे लोग रोज की तरह नाव से लौट रहे थे। तभी महाकाली नदी में नाव डगमगाकर पलट गई और 11 लोग डूबने लगे। नदी किनारे काम कर रहे 14 साल के घनश्याम ने डूबते लोगों को बचाने के लिए नदी में छलांग लगा दी और छह लोगों को सकुशल बचा लिया।
इसके बाद साल 2005 में भी घनश्याम ने मां पूर्णागिरि धाम मेले के दौरान अलीगढ़ के एक तीर्थयात्री को डूबने से बचाया। इस वीरता के लिए घनश्याम को साल 2007 में राष्ट्रपति ने जीवन रक्षा पदक से नवाजा। जिसमें 30 हजार रुपए के अलावा दो मेडल और प्रशस्ति पत्र दिया गया।
उनका कहना है कि नदी किनारे रहने के चलते उन्हें तैराकी में बचपन से ही महारथ है। अपने इस हुनर को घनश्याम अब भी डूबते लोगों को बचाने में लगा रहा है।
No comments:
Post a Comment