ऑपरेशन उत्तराखंड में कांग्रेस की हनक तार-तार हुई है। हरीश रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में कांग्रेस को कई जगहों पर समझौता और झुकना पड़ा।
नई सरकार का भविष्य खतरे में
कांग्रेस विधायकों ने परंपरागत ढंग एक लाइन का प्रस्ताव पास कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अधिकार जरूर दे दिया लेकिन विधानमंडल दल की बैठक में पर्यवेक्षकों व प्रभारी के सामने जो कुछ हुआ वह नई सरकार के भविष्य के लिए भी खतरे की घंटी है।
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खुलेआम मांग रखने वाले सहयोगियों को समझाने में कम समय लगा जबकि अपने विधायकों को समझाने में दिग्गज दर्नादन द्विवेदी, अंबिका सोनी और गुलाम नबी आजाद के पसीने छूट गए।
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दो साल पहले जो हरीश रावत अपने समर्थक विधायकों का संख्या बल दिखा रहे थे उन्हें भी विधायकों के संख्या बल के आगे नतमस्तक होना पड़ा। कांग्रेस के33 विधायकों में 22 का आंकड़ा हरीश रावत और पर्यवेक्षकों को परेशान करने के लिए काफी था।
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हरीश रावत को प्रदेश के विकास के साथ अभी खुद केलिए जगह बनानी होगी। उन्हें अपनों केसाथ उन्हें भी संतुष्ट करकेदिखाना होगा जो खुलकर सामने आ गए हैं।
शीर्ष नेतृत्व से कई जगहों पर चूक
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से कई जगहों पर चूक हुई है। जिस तरह हरीश रावत के भारी विरोध के बाद भी आलाकमान ने विजय बहुगुणा का नाम तय कर भेजा था और एक लाइन में उसे पारित कराया। वैसा हरीश रावत के साथ नहीं हुआ।
पढ़ें, बहुगुणा कैबिनेट से हरीश रावत ने बनाई अपनी 'ब्रिगेड'
विधानमंडल दल की बैठक में जाने से पहले तक यह बात हर स्तर पर छुपाकर रखने की कोशिश हुई। जो सबको पता थी। दौड़ में शामिल नेताओं को भी आखिर तक यह आस बनी रही कि शायद विधानमंडल दल की बैठक में उन्हें मान्यता मिल जाए।
नेतृत्व परिवर्तन पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से नहीं लिया गया। एक महीने पहले जिन विधायकों की चिट्ठी दिल्ली पहुंची थी न तो उनके पूछताछ हुई न ही बात। जब सुबह सभी विधायक फिर एक जगह जुटे उसे भी नजरअंदाज कर दिया गया।
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कांग्रेस विधायकों ने परंपरागत ढंग एक लाइन का प्रस्ताव पास कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अधिकार जरूर दे दिया लेकिन विधानमंडल दल की बैठक में पर्यवेक्षकों व प्रभारी के सामने जो कुछ हुआ वह नई सरकार के भविष्य के लिए भी खतरे की घंटी है।
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खुलेआम मांग रखने वाले सहयोगियों को समझाने में कम समय लगा जबकि अपने विधायकों को समझाने में दिग्गज दर्नादन द्विवेदी, अंबिका सोनी और गुलाम नबी आजाद के पसीने छूट गए।
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दो साल पहले जो हरीश रावत अपने समर्थक विधायकों का संख्या बल दिखा रहे थे उन्हें भी विधायकों के संख्या बल के आगे नतमस्तक होना पड़ा। कांग्रेस के33 विधायकों में 22 का आंकड़ा हरीश रावत और पर्यवेक्षकों को परेशान करने के लिए काफी था।
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हरीश रावत को प्रदेश के विकास के साथ अभी खुद केलिए जगह बनानी होगी। उन्हें अपनों केसाथ उन्हें भी संतुष्ट करकेदिखाना होगा जो खुलकर सामने आ गए हैं।
शीर्ष नेतृत्व से कई जगहों पर चूक
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से कई जगहों पर चूक हुई है। जिस तरह हरीश रावत के भारी विरोध के बाद भी आलाकमान ने विजय बहुगुणा का नाम तय कर भेजा था और एक लाइन में उसे पारित कराया। वैसा हरीश रावत के साथ नहीं हुआ।
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नेतृत्व परिवर्तन पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से नहीं लिया गया। एक महीने पहले जिन विधायकों की चिट्ठी दिल्ली पहुंची थी न तो उनके पूछताछ हुई न ही बात। जब सुबह सभी विधायक फिर एक जगह जुटे उसे भी नजरअंदाज कर दिया गया।
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