
कांग्रेस की ना के बाद बिहार में अलग-थलग पड़ी जदयू को एक बार फिर से फेडरल फ्रंट के निर्माण की याद आई है। फिलहाल नए साथी की तलाश में निराशा हाथ लगने के बाद जदयू लोकसभा चुनाव से पहले हर हाल में तृणमूल कांग्रेस, झारखंड विकास मोर्चा और बीजद के साथ फेडरल फ्रंट तैयार कर लेना चाहती है।
इसके अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की निगाहें सीटों के बंटवारे के मामले में लोजपा और राजद के बीच शुरू हुई खटपट पर है। हालांकि अभी लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने राजद पर दबाव बनाने के लिए जदयू से गठबंधन का संकेत देना शुरू ही किया है।
मगर यदि पासवान जदयू के साथ गठबंधन के लिए वाकई गंभीर हुए तो नीतीश उन्हें हाथों हाथ लेने में देर नहीं लगाएंगे। जदयू को लगता है कि लोजपा के साथ आने से दलित-महादलित, कुछ पिछड़ी जातियों और पसमांदा मुसलमानों के वोट के सहारे पार्टी चुनाव में अपनी साख बचा लेगी।
पार्टी में तमाम मतभेदों के बावजूद नीतीश व्यक्तिगत रूप से अपने पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्षधर थे। मगर चारा घोटाले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद राज्य में माय (मुसलमान और यादव) समीकरण की मजबूती के संकेत के बाद कांग्रेस ने जदयू की जगह अपने पुराने साथी पर भी भरोसा जताना बेहतर समझा।
कांग्रेस की अंत समय में ना के बाद जदयू बिहार में अलग-थलग पड़ गई। अब स्थिति यह है कि एक तरफ भाजपा से गठबंधन तोड़ने के कारण अगड़ी जातियां जहां नीतीश से नाराज हैं, वहीं डर इस बात का भी है कि कांग्रेस, राजद और लोजपा के एक साथ आ जाने से कहीं लालू का माय समीकरण बेहद मजबूत न हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो कुछ पिछड़ी जातियों और महादलितों में पैठ रखने वाली जदयू के लिए चुनाव में हालात संभालने मुश्किल हो जाएंगे। वह भी तब जब भाजपा ने अपने पीएम पद के उम्मीदवार मोदी को पिछड़ी जाति के नेता के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है।
चौतरफा संकट में घिरी जदयू का पूरा ध्यान फिलहाल फेडरल फ्रंड बनाने और किसी तरह लोजपा को अपने साथ लाने की है। फेडरल फ्रंट के लिए नीतीश ने बीते दिनों जहां झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी से मुलाकात की थी, वहीं मरांडी ने इस मुलाकात के बाद उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भेंट की थी। ममता बनर्जी तो शुरू से ही फ्रंट बनाने पर सहमत है।
दूसरी ओर जदयू को लगता है कि अगर लोजपा साथ आई तो पार्टी जातिगत समीकरण के हिसाब से अपनी स्थिति मजबूत कर पाएगी। ऐसे में महादलित, दलितों और कुछ पिछड़ी जातियों और कम से कम पसमांदा मुसलमानों का एकमुश्त वोट इस गठबंधन को हासिल हो जाएगा। मगर परेशानी यह है कि पासवान फिलहाल राजद पर दबाव बनाने के लए जदयू के साथ जाने महज संकेत भर दे रहे हैं। तीखे तेवर के बाद लालू प्रसाद के बदले बोल राजद पर दबाव पड़ने का साफ संकेत भी दे रहे हैं।
इसके अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की निगाहें सीटों के बंटवारे के मामले में लोजपा और राजद के बीच शुरू हुई खटपट पर है। हालांकि अभी लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने राजद पर दबाव बनाने के लिए जदयू से गठबंधन का संकेत देना शुरू ही किया है।
मगर यदि पासवान जदयू के साथ गठबंधन के लिए वाकई गंभीर हुए तो नीतीश उन्हें हाथों हाथ लेने में देर नहीं लगाएंगे। जदयू को लगता है कि लोजपा के साथ आने से दलित-महादलित, कुछ पिछड़ी जातियों और पसमांदा मुसलमानों के वोट के सहारे पार्टी चुनाव में अपनी साख बचा लेगी।
पार्टी में तमाम मतभेदों के बावजूद नीतीश व्यक्तिगत रूप से अपने पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्षधर थे। मगर चारा घोटाले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद राज्य में माय (मुसलमान और यादव) समीकरण की मजबूती के संकेत के बाद कांग्रेस ने जदयू की जगह अपने पुराने साथी पर भी भरोसा जताना बेहतर समझा।
कांग्रेस की अंत समय में ना के बाद जदयू बिहार में अलग-थलग पड़ गई। अब स्थिति यह है कि एक तरफ भाजपा से गठबंधन तोड़ने के कारण अगड़ी जातियां जहां नीतीश से नाराज हैं, वहीं डर इस बात का भी है कि कांग्रेस, राजद और लोजपा के एक साथ आ जाने से कहीं लालू का माय समीकरण बेहद मजबूत न हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो कुछ पिछड़ी जातियों और महादलितों में पैठ रखने वाली जदयू के लिए चुनाव में हालात संभालने मुश्किल हो जाएंगे। वह भी तब जब भाजपा ने अपने पीएम पद के उम्मीदवार मोदी को पिछड़ी जाति के नेता के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है।
चौतरफा संकट में घिरी जदयू का पूरा ध्यान फिलहाल फेडरल फ्रंड बनाने और किसी तरह लोजपा को अपने साथ लाने की है। फेडरल फ्रंट के लिए नीतीश ने बीते दिनों जहां झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी से मुलाकात की थी, वहीं मरांडी ने इस मुलाकात के बाद उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भेंट की थी। ममता बनर्जी तो शुरू से ही फ्रंट बनाने पर सहमत है।
दूसरी ओर जदयू को लगता है कि अगर लोजपा साथ आई तो पार्टी जातिगत समीकरण के हिसाब से अपनी स्थिति मजबूत कर पाएगी। ऐसे में महादलित, दलितों और कुछ पिछड़ी जातियों और कम से कम पसमांदा मुसलमानों का एकमुश्त वोट इस गठबंधन को हासिल हो जाएगा। मगर परेशानी यह है कि पासवान फिलहाल राजद पर दबाव बनाने के लए जदयू के साथ जाने महज संकेत भर दे रहे हैं। तीखे तेवर के बाद लालू प्रसाद के बदले बोल राजद पर दबाव पड़ने का साफ संकेत भी दे रहे हैं।
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