इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर मामले में नरेंद्र मोदी के खासमखास अमित शाह को आरोपी बनाने या नहीं बनाए जाने को लेकर गृहमंत्रालय और सीबीआई के बीच खींचतान चल रही है।
गृहमंत्रालय की मंशा है कि जांच एजेंसी खुफिया एजेंसी आईबी के चार अधिकारियों के साथ ही शाह को भी आरोपी बनाए लेकिन सीबीआई ने जल्द ही दायर होने वाली अतिरिक्त चार्जशीट में भाजपा नेता का नाम फिलहाल नहीं डालने का फैसला किया है।
हालांकि सीबीआई औपचारिक तौर पर कह रही है कि इस मामले में अभी अंतिम फैसला नहीं लिया गया है लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसी बीच का रास्ता निकालने का मन बना रही है।
सीबीआई की मजबूरी है कि कानूनी और तकनीकी कारणों से इन चार आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मंत्रालय से मंजूरी लेनी होगी। मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक, सरकार इसी का फायदा उठाकर सीबीआई से डील करना चाहती है।
मंत्रालय और इसके अंतर्गत काम करने वाली आईबी शुरू से इन अधिकारियों पर कार्रवाई का विरोध कर रही है। सीबीआई का कहना है कि इन अधिकारियों के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ में संलिप्तता के ठोस सबूत हैं लेकिन शाह के खिलाफ ऐसे सबूत नहीं मिले जिसके आधार पर उन्हें आरोपी बनाया जा सके।
दूसरी ओर आईबी और मंत्रालय यह माने बैठी है कि इन अधिकारियों के खिलाफ जो भी सबूत हैं, वे अदालत में नहीं ठहरेंगे। लिहाजा उन्हें आरोपी बना कर सीबीआई आईबी के खिलाफ गलत परंपरा कायम करेगी।
मंत्रालय में चल रही मंत्रणा के मुताबिक अगर इस मामले में कमजोर सबूत के आधार पर खुफिया एजेंसी के अधिकारियों को आरोपी बनाया जा रहा है तो शाह इस घेरे से बाहर क्यों रहें।
गौरतलब है कि शाह गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद से उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के काफी करीबी माने जाते हैं।
इशरत एनकाउंटर के वक्त शाह गुजरात के गृह राज्यमंत्री थे और फिलहाल भाजपा के उत्तर प्रदेश प्रभारी हैं।
इस मामले में गुजरात पुलिस के नौ अधिकारियों को पहले ही आरोपी बनाया जा चुका है। आईपीएस अधिकारी डी जी बंजारा सहित चार अधिकारी इसी आरोप में जेल में हैं।
गृहमंत्रालय की मंशा है कि जांच एजेंसी खुफिया एजेंसी आईबी के चार अधिकारियों के साथ ही शाह को भी आरोपी बनाए लेकिन सीबीआई ने जल्द ही दायर होने वाली अतिरिक्त चार्जशीट में भाजपा नेता का नाम फिलहाल नहीं डालने का फैसला किया है।
हालांकि सीबीआई औपचारिक तौर पर कह रही है कि इस मामले में अभी अंतिम फैसला नहीं लिया गया है लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसी बीच का रास्ता निकालने का मन बना रही है।
सीबीआई की मजबूरी है कि कानूनी और तकनीकी कारणों से इन चार आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मंत्रालय से मंजूरी लेनी होगी। मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक, सरकार इसी का फायदा उठाकर सीबीआई से डील करना चाहती है।
मंत्रालय और इसके अंतर्गत काम करने वाली आईबी शुरू से इन अधिकारियों पर कार्रवाई का विरोध कर रही है। सीबीआई का कहना है कि इन अधिकारियों के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ में संलिप्तता के ठोस सबूत हैं लेकिन शाह के खिलाफ ऐसे सबूत नहीं मिले जिसके आधार पर उन्हें आरोपी बनाया जा सके।
दूसरी ओर आईबी और मंत्रालय यह माने बैठी है कि इन अधिकारियों के खिलाफ जो भी सबूत हैं, वे अदालत में नहीं ठहरेंगे। लिहाजा उन्हें आरोपी बना कर सीबीआई आईबी के खिलाफ गलत परंपरा कायम करेगी।
मंत्रालय में चल रही मंत्रणा के मुताबिक अगर इस मामले में कमजोर सबूत के आधार पर खुफिया एजेंसी के अधिकारियों को आरोपी बनाया जा रहा है तो शाह इस घेरे से बाहर क्यों रहें।
गौरतलब है कि शाह गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद से उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के काफी करीबी माने जाते हैं।
इशरत एनकाउंटर के वक्त शाह गुजरात के गृह राज्यमंत्री थे और फिलहाल भाजपा के उत्तर प्रदेश प्रभारी हैं।
इस मामले में गुजरात पुलिस के नौ अधिकारियों को पहले ही आरोपी बनाया जा चुका है। आईपीएस अधिकारी डी जी बंजारा सहित चार अधिकारी इसी आरोप में जेल में हैं।
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