
उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता मामले में अपने फैसले की समीक्षा से इन्कार करते हुए केंद्र सरकार और समलैंगिंकों के अधिकारों की लडाई लड रहे कुछ संगठनों की पुनरीक्षण याचिकाएं आज खारिज कर दीं।
न्यायमूर्ति एच.एल दत्तू और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने सरकार और गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन के अलावा जाने-माने लेखक विक्रम सेठ तथा कला और मनोरंजन जगत की कुछ हस्तियों की समीक्षा याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दी कि उसके फैसले में कोई खामी नजर नहीं आ रही है।
सरकार नाज फाउंडेशन और अन्य ने आपसी सहमति से वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी में रखने संबंधी उच्चतम न्यायालय के बीते 11 दिसम्बर के फैसले की समीक्षा का आग्रह किया था।
सरकार ने दायर की थी याचिका
समलैंगिक संबंधों को अवैध करार देने वाले कानून को सही ठहराने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में समलैंगिकता को गुनाह बताया था। अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के वर्ष 2009 के फैसले को पलटकर 1861 के इस कानून को वैध करार दिया था।
न्यायमूर्ति एच.एल दत्तू और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने सरकार और गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन के अलावा जाने-माने लेखक विक्रम सेठ तथा कला और मनोरंजन जगत की कुछ हस्तियों की समीक्षा याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दी कि उसके फैसले में कोई खामी नजर नहीं आ रही है।
सरकार नाज फाउंडेशन और अन्य ने आपसी सहमति से वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी में रखने संबंधी उच्चतम न्यायालय के बीते 11 दिसम्बर के फैसले की समीक्षा का आग्रह किया था।
सरकार ने दायर की थी याचिका
समलैंगिक संबंधों को अवैध करार देने वाले कानून को सही ठहराने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में समलैंगिकता को गुनाह बताया था। अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के वर्ष 2009 के फैसले को पलटकर 1861 के इस कानून को वैध करार दिया था।
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