Wednesday, February 5, 2014

'मेरी भैंसों को जो शोहरत है, वह विक्टोरिया की भी नहीं'

azam khan comments on his buffalo
'मुझसे भला तो मेरी भैंसों का नसीब...मेरी भैंसों को जो शोहरत हासिल है वह तो मल्लिका विक्टोरिया को भी नहीं मिली होगी ...सोचता हूं...काश! मेरा भी नसीब मेरी भैंसों जैसा होता!'

यह लफ्ज किसी और के नहीं, खुद संसदीय कार्यमंत्री आजम खां के हैं। पहले मुजफ्फरनगर दंगा...फिर विदेशी टूर ...और अब भैंसों के कारण मीडिया को कोसकर आजम अपना दर्द हल्का कर रहे हैं। मंगलवार को वे साहित्य के आंगन में पहुंचे तो उनकी सुई भैंसों पर अटक गई।

मौका था पद्मभूषण से सम्मानित कवि गोपालदास नीरज की रचनाओं के लोकार्पण का। लोगों को पहले से पता था कि इस कार्यक्रम में राज्यपाल बीएल जोशी व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ संसदीय कार्यमंत्री आजम खां को भी उपस्थित होना है।

ऐसे में लोगों की निगाहें औरों के साथ आजम खां की तकरीर पर भी थी। शायद आजम भी तय करके आए थे कि इस महफिल की चर्चा उनकी वजह से ही होगी।

उन्होंने लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान स्थित समारोह स्थल पर दस्तक के साथ ही अपने मंसूबे का इजहार भी कर दिया।

स्टेज पर चढ़े तो कार्यक्रम का संचालन कर रहे अनवर जलालपुरी से यह कहते हुए आगे बढ़े कि '..भाई कुछ मेरी भैंसों के बारे में भी सुना दीजिए।' ...इसके बाद जब बारी बोलने की आई तो जमकर भड़ास निकाली।

उन्होंने बात की शुरुआत नीरज व अन्य मेहमानों के स्वागत से की, मगर चंद लफ्ज ही आगे बढ़े कि उन्होंने मीडिया को निशाना बनाना शुरू कर दिया।

बोले- 'मैं आजाद हिंदुस्तान का बहुत दु:खी दिल का बाशिंदा हूं...तमाम दु:खी दिलों के लिए नुमाइंदगी करना चाहता हूं। मेरे जैसे विवादित आदमी को भी ये (नीरजजी) बेइंतिहा प्यार करते हैं...।

पर मेरी भैंसों को जो शोहरतें हासिल हैं वो मल्लिका विक्टोरिया को भी नहीं मिली होंगी। मैं अपने नसीब पर तरस खाता हूं। सोचता हूं कि काश! मेरा नसीब भी मेरी भैंसों जैसा होता। ..आज एक कार्टून में देखा, एक साहब मेरी भैंसों का गोबर सिर पर उठा रखे हैं..गौर तो कीजिए मेरी भैंसों के नसीब को..।

कितनी इज्जत अफजाई मेरी भैंसों की हो रही है..।..जब भी टीवी खोलता हूं देखता हूं कि मैं पीछे, मेरी भैंसें आगे।..भैंसें पीछे, उनका गोबर सिर पर..। मैं अल्लाह से दुआ करता हूं कि मेरी भैंसों का गोबर उन सबके सिर पर आ जाए जो शायद कभी गोबर नहीं उठाए होंगे..'।

आजम ने कहा कि बहुत दु:ख होता है कि ये (मीडिया) अपने 'स्टैंडर्ड', अपने 'म्यार' को कहां ले गए? उन्होंने कार्यक्रम में एक महिला द्वारा सीएम तक अपनी बात पहुंचाने के तरीके के बहाने भी निशाना साधा।

कहा-यह समझना होगा कि हर बात के लिए सलीके की जरूरत होती है। जहां सलीका खत्म, तहरीर चौक हो जाता है..तहरीर चौक होता है तो मुल्क की तकदीरें अंधेरे में चली जाती हैं।

उन्होंने नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना उन पर भी जम कर तीर चलाए। कहा- जब इंसाफ की डोर हाथ से निकलेगी, मजहबों की बुनियादों पर खून के निशान होंगे..जब इंसान का खून गंदे पानी से भी सस्ता होगा तो इतिहास गवाह है कि 'उनके' इतिहास मिट गए।

उन्होंने कहा कि नीरज की जिंदगी से सीख लेनी होगी कि मेरा पड़ोसी भूखा हो तो मुझसे न खाया जाए..। आजम ने पैगाम भी दिया..'मेरे करीब आइए, मुझे अपना बनाइए, या मुझे अपने करीब आने दीजिए..।'

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